
अरण्यकाण्ड (Aranya Kand) रामायण का तीसरा भाग का जिसमें शूर्पणखा के नाक और कान काटने की घटना से सीता हरण तक की कहानी शामिल है।
अरण्यकाण्ड (Aranya Kand) में हम जानेंगे कि राम ने कितनी कठिनाई से वन काटा, लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान क्यों काटे, रावण ने किस प्रकार छल से सीता का हरण किया, जटायु ने सीता को बचाने के लिए रावण का सामना किया।
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राम ने वनवास का समय किस प्रकार व्यतीत किया? (How did Rama spend his time of exile?)
वनवास काल के दौरान राम और लक्ष्मण ने कई ऋषि मुनियों की सहायता की। उनकी पूजा-अर्चना में भंग डालने वाले राक्षसों से उनकी रक्षा करते थे और राक्षसों का संहार करते थे। वनवास के दौरान श्री राम एक जगह से दूसरी जगह भ्रमण करते थे और अलग-अलग जगह वनवास व्यतीत करते थे। भरत से मिलने (कब मिले भरत से?) के बाद राम चित्रकूट से निकल कर अत्रि ऋषि मुनि के आश्रम पहुंचे। वहां माता सीता ने अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया से पतिव्रता धर्म का ज्ञान प्राप्त किया।
राम अत्रि ऋषि के बाद शरभंग मुनि के आश्रम गए और उनसे मुलाकात की। शरभंग ऋषि कई वर्षों से राम के दर्शन की आश में वहाँ निवास कर रहे थे। राम के दर्शन के पश्चात शरभंग ऋषि अपने शरीर का त्याग कर दिया और ब्रह्मलोक की ओर चले गए। एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते वक्त राम को रास्ते में हड्डियों के ढेर दिखाई पड़ते थे। उन्हें पता चला कि ये हड्डियाँ ऋषि-मुनियों के हैं। जिन्हें राक्षसों ने खा लिया है। इस कारण राम ने समस्त राक्षसों का अंत करने की प्रतिज्ञा की। राम ने सुतीक्ष्ण अगस्त्य आदि ऋषियों से मुलाकात की। फिर दण्डक वन में प्रवेश किया। वहाँ उनकी मुलाकात जटायु से हुई। फिर राम ने पंचवटी में अपना आश्रय लिया।
लक्ष्मण ने कैसे शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए? (Lakshmana had cut off the nose and ears of Shurpanakha. – Aranya Kand)
शूर्पणखा के नाक और कान लक्ष्मण ने क्यों काटे? श्री राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के अंतिम वर्ष व्यतीत कर रहे थे। वनवास का अंतिम समय उन्होंने पंचवटी में बिताने का निश्चय किया, जो गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। माता सीता को यह स्थान बहुत प्रिय लगा। इस वजह से श्री राम ने शेष समय पंचवटी में काटने का निश्चय किया। तीनों ने वहां कुटिया बनाई और रहने लगे।
शूर्पणखा का राम से विवाह का प्रस्ताव (Shoorpanakha’s marriage proposal to Lord Rama)
वनवास का अंतिम समय शांतिपूर्ण बीत रहा था क्योंकि राक्षसों का आतंक भी पहले की तुलना में काफी कम हो गया था। एक दिन एक राक्षस कन्या शूर्पणखा वन में भ्रमण कर कर रही थी। वहीं उसकी नजर श्रीराम पर पड़ी। श्री राम को देखकर शूर्पणखा मोहित हो गई। इसलिए वह राम से विवाह का प्रस्ताव लेकर राम से आग्रह करने लगी। लेकिन राम ने सीता को वचन दिया था कि उनकी सिर्फ एक ही पत्नी सीता होगी। इसलिए राम ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया और हंसी ठिठोली में लक्ष्मण की तरफ इशारा करके उससे बात करने को कहा। फिर शूर्पणखा लक्ष्मण के पास पहुंची और उनके सामने विवाह प्रस्ताव रखी। तब लक्ष्मण ने शूर्पणखा से कहा कि “मैं तो अपने भैया-भाभी का दासी हूं, इसलिए अगर तुमने मुझसे शादी की तो तुम्हें भी मेरी तरह दासी बनकर रहना पड़ेगा।”
शूर्पणखा ने सीता माता पर आक्रमण करने का प्रयास किया Shurpanakha tried to attack Mother Sita()
यह बात सुनकर शूर्पणखा को बहुत गुस्सा आया। क्योंकि वह इसे अपना अपमान समझ रही थी और क्रोध में माता सीता की ओर हमला करने का प्रयास करने लगी। बचाव में लक्ष्मण ने भी क्रोधित होकर शूर्पणखा के नाक और कान काट दिए। इससे शूर्पणखा और अपमानित महसूस करने लगी।
अपने अपमान के बारे में शूर्पणखा ने अपने भाई खर को बताया। खर अपने साथियों के साथ अपनी बहन के अपमान का बदला लेने राम की कुटिया पर हमला कर दिया। राम-लक्ष्मण ने खर और उसकी समस्त राक्षस साथियों का अंत कर दिया।
इसके बाद शूर्पणखा और भी क्रोधित हो गई इस बात की खबर लेकर शूर्पणखा अपने दूसरे भाई लंका नरेश रावण के पास पहुँची। रावण को अपने अपमान के बारे में बताया शूर्पणखा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए रावण को राम और लक्ष्मण से युद्ध करने के लिए उकसाया और सीता की सुंदरता का बखान करने लगी।
सीता को पाने के लिए रावण की छल नीति (Ravana’s deceit policy to get Sita)
रावण सीता से पहले से ही बहुत प्रभावित थे। सीता को पाने की इच्छा से वह सीता के स्वयंवर में भी गए थे। शूर्पणखा से सीता की सुंदरता का बखान सुनकर रावण सीता से और भी प्रभावित हो गया और सीता को पाने की इच्छा उनमें पुनः जागृत हो गई।
मारीच ने स्वर्ण मृग का रूप धारण किया (Maricha took on the appearance of a golden deer)
छल से सीता को प्राप्त करने की नीति से रावण अपने मामा मरीच के पास पहुँचा। मरीच के पास ऐसी शक्तियां थी जिससे वह कोई भी रूप धारण कर सकता था। उनकी इन्हीं शक्तियों का रावण लाभ उठाना चाहता था। मरीज भी चाहता था कि उसका वध प्रभु श्री राम के हाथों हो। इसलिए वह रावण के कहने पर स्वर्ण मृग का रूप धारण कर लिया। जब सीता की नजर उस स्वर्ण मृग पर पड़ी तो वह मृग की सुंदरता पर मोहित हो गई और श्रीराम से उसे पकड़ने का आग्रह करने लगी। अपनी पत्नी सीता की इच्छा पूरी करने के लिए राम मृग के पीछे पीछे वन की ओर चले गए। उनके पीछे जाने से पहले राम ने लक्ष्मण को सीता की रक्षा करने का आदेश दिया।
रावण ने राम के कराहने की आवाज निकाली (Ravana made the sound of Rama’s moaning)
मृग को पकड़कर लाने में काफी समय लग रहा था। काफी देर तक राम नहीं लौटे थे। इस बात से सीता को श्री राम की चिंता होने लगी और रावण के माया जाल से सीता को राम के कराहने की आवाज भी सुनाई दे रही थी। इस वजह से माता-पिता और भी चिंतित हो गई। इसलिए सीता ने लक्ष्मण को श्री राम को ढूंढने के लिए कहने लगी। लेकिन लक्ष्मण सीता को सांत्वना देने लगे कि “श्री राम को कुछ नहीं हो सकता। वे अजय है थोड़ी ही देर में आते होंगे”
लक्ष्मण अपने भाई राम की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता की रक्षा करना चाहता था। इसलिए भी वह श्रीराम के पीछे नहीं जा सकता था। लक्ष्मण के लाख समझाने पर भी सीता नहीं मानी और अपने देवर लक्ष्मण को प्रभु श्री राम को ढूंढ कर लाने का आदेश दी जिसके बाद लक्ष्मण को श्री राम के आदेश की अवहेलना कर माता सीता की बात मानकर वन जाने को तैयार हो गए।
लक्ष्मण रेखा (Lakshman Rekha) – Aranya Kand
वन में जाने से पहले लक्ष्मण ने माता सीता की रक्षा के लिए कुटिया के चारों और लक्ष्मण रेखा खींच दी ताकि इस रेखा के अंदर कोई प्रवेश ना कर सके। लक्ष्मण ने माता सीता से इस रेखा से बाहर ना आने का आग्रह किया। इसके बाद लक्ष्मण ने अपने भाई राम की खोज में वन की ओर निकल पड़े।
लक्ष्मण रेखा (Aranya Kand) अरण्य कांड के सबसे प्रमुख भागों में से एक है क्योंकि लक्ष्मण रेखा सीता माता की रक्षा के लिए खींची गई थी। यदि लक्ष्मण ने सीता माता की रेखा को पार नहीं किया होता, तो हो सकता था कि सीता माता रावण से सुरक्षित होतीं।
सीता हरण (Sita Haran)- Aranya Kand
रावण सीता को कैसे हरा था? रावण काफी देर से यह सारी घटना छिपकर देख रहा था और सीता को एकांत में होने की प्रतीक्षा कर रहा था। लक्ष्मण के कुटिया से दूर जाते ही रावण ने तुरंत साधु का रूप धारण कर लिया और माता सीता की कुटिया की ओर जाने लगा। कुटिया के पास पहुंचकर भिक्षा मांगने लगा। लक्ष्मण के बनाए रेखा को रावण पार नहीं कर सकता था। इसलिए माता सीता को भिक्षा देने के बहाने रेखा से बाहर आने को मजबूर कर दिया, ताकि वह माता सीता का अपहरण कर सके, माता सीता के रेखा से बाहर आते ही रावण ने उन्हें बलपूर्वक दबोच लिया और खींचता हुआ अपने पुष्पक विमान में बैठकर लंका की ओर जाने लगा। माता सीता स्वामी और लक्ष्मण को पुकारती रही। माता अपने आभूषण जमीन पर फेंकने लगी ताकि श्री राम और लक्ष्मण उन्हें ढूंढ सके।
जटायु का सीता को बचाने का प्रयास (Jatayu’s attempt to save Mata Sita – Aranya Kand)
आकाश में विशालकाय पक्षी जटायु भ्रमण कर रहा था। उसकी नजर पुष्पक विमान की ओर पड़ी। जिसमें सीता को रावण अपहरण कर ले जा रहा था। सीता की मदद की आवाज सुनकर जटायु उन्हें बचाने के लिए चल पड़ा। जटायु काफी वृद्ध हो चला था इसलिए वह रावण जैसे बलशाली राक्षस का सामना नहीं कर पाया और माता सीता को बचाने में विफल हो गया लेकिन माता सीता को बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी।
श्री राम को पता चला असुर शक्ति का मायाजाल
उधर लक्ष्मण की मुलाकात जब राम से हुई तो उन्होंने बताया कि माता सीता ने उन्हें वन जाकर आप (राम) को खोजने का आदेश दिया क्योंकि माता सीता ने आपकी (राम) कराहती हुई आवाज सुनी थी। यह सुनकर श्री राम को ज्ञात हो गया कि यह किसी असुर शक्ति का मायाजाल था और सीता संकट में होगी। राम लक्ष्मण कुटिया में वापस लौटे। सीता कुटिया में ना मिलने पर दोनों भाई राम और लक्ष्मण सीता को ढूंढने निकल पड़े। रास्ते में उन्हें उन्हें जटायु मिला जो बुरी तरह घायल था। जटायु ने राम और लक्ष्मण को बताया कि माता सीता का अपहरण कर रावण लंका की ओर जा रहा है। यह बताते हुए जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए।
राम ने किया जटायु का अंतिम संस्कार
राम ने जटायु का अंतिम संस्कार किया और सीता को ढूंढने निकल पड़े। रास्ते में उनकी मुलाकात गन्धर्व कबन्ध से हुई जो ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बन गया था। राम ने गन्धर्व कबन्ध का वध कर उसका उद्धार किया। फिर वह शबरी के आश्रम पहुंचे जहां राम शबरी की भक्ति भावना देखकर बहुत प्रसन्न हुए और शबरी के जूठे बेर को प्रेम से खाया। गन्धर्व कबन्ध और शबरी ने मिलकर राम और लक्ष्मण को हनुमान और सुग्रीव के पास पहुंचाया और उनसे मदद लेने का सुझाव दिया।
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