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Ayodhya Kand in Hindi | अयोध्या काण्ड | राम को 14 वर्ष का वनवास

Posted on May 24, 2022June 25, 2022 By GeekCer Education No Comments on Ayodhya Kand in Hindi | अयोध्या काण्ड | राम को 14 वर्ष का वनवास
Ayodhya Kand in Hindi | अयोध्या काण्ड | राम को 14 वर्ष का वनवास

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण का दूसरा भाग Ayodhya Kand (अयोध्या कांड) है। अयोध्या कांड (Ayodhya Kand) में भगवान श्री राम के वन आगमन से लेकर राम भरत मिलाप तक की घटना आती है। अयोध्या कांड में 4286 श्लोक सम्मिलित है।

Table of Contents

  • राम को राजा बनाने की तैयारी (Preparing to make Ram the King)
  • राम की जगह भरत को राजा बनाने का षड्यंत्र (Conspiracy to make Bharat the king instead of Ram)
  • राम को 14 वर्ष का वनवास किस प्रकार मिला (How did Ram get 14 years of exile?)
  • पुत्र वियोग में दशरथ का स्वर्गवास (Dasharatha’s death due to son’s separation in Ayodhya Kand)
  • अयोध्या कांड (Ayodhya Kand) राम-भरत मिलाप (Ayodhya Kand Ram-Bharat Milap)

राम को राजा बनाने की तैयारी (Preparing to make Ram the King)

राजा दशरथ अब वृद्ध हो चले थे। राम के विवाह के पश्चात वे राज पाठ के काम से मुक्त होकर, राम को राजा बनाना चाहते थे। क्योंकि राजा दशरथ राम के अलौकिक गुण से बहुत प्रभावित थे। अयोध्या की प्रजा भी राम को ही राजा के रूप में देखना चाहती थी। इसीलिए राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी और राम के राज्याभिषेक करने का आदेश दिया।

राम की जगह भरत को राजा बनाने का षड्यंत्र (Conspiracy to make Bharat the king instead of Ram)

कैकेयी ने क्यों मांगा था राम के लिए वनवास? जब राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का राजा बनाने का फैसला लिया, तो सभी बहुत प्रसन्न थे। रानी कैकेयी भी इस बात से शुरुआत में संतुष्ट थी। लेकिन रानी कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी की खुशी पर दुख व्यक्त किया। रानी कैकेयी को भड़काने लगी। मंथरा ने ही कैकेयी के दिमाग में राम की जगह भरत को राजा बनाने की बात डाली और इस मकसद को कामयाब करने का रास्ता भी मंथरा ने ही दिया था।

राम को 14 वर्ष का वनवास किस प्रकार मिला (How did Ram get 14 years of exile?)

मंथरा ने रानी कैकेयी को दशरथ के द्वारा दिए गए 2 वचनों का याद दिलाया जो राजा दशरथ ने कई वर्षों पहले रानी कैकेयी को उनकी जान बचाने की खुशी में दिए थे। मंथरा ने ही रानी कैकेयी के मन में प्रथम वचन में भरत के लिए राजगद्दी और दूसरे वचन में राम को 14 वर्ष का वनवास देने की कूटनीति बुद्धि डाली। जैसा जैसा दासी मंथरा ने उन्हें कहा वैसा ही रानी कैकेयी करती गयी।

रानी राजा दशरथ से नाराज होकर कोपभवन में चली गई। दशरथ उन्हें मनाने आए। उसी समय रानी कैकेयी ने अपने दोनों वचन में अपने पुत्र भरत के लिए राज सिंहासन और राम को 14 वर्ष का वनवास मांग लिया।

इस बात से राजा दशरथ को बहुत आघात पहुंचा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपने वचन कैसे पूरा करे और वचन से मना भी नहीं कर पा रहे थे क्योंकि वे रघुकुल के रीत के अनुयायी थे। “रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाई” इस वजह से वह अपने वचनों से पीछे नहीं हट पा रहे थे। इसलिए राजा दशरथ को दिल पर पत्थर रखकर वचनों का पालन करना पड़ा।

इस बात की खबर जब सबको हुई तो सभी बहुत दुखी हुए लेकिन राम अपने पिता के वचनों को खुशी-खुशी पूरा करने को तैयार हो गया। राम के वनवास जाने की खबर जब सीता और लक्ष्मण को मिली तो वे भी राम के साथ वनवास जाने का आग्रह करने लगे। राम ने लक्ष्मण और सीता को बहुत समझाया कि वे साथ ना जाए लेकिन वे नहीं माने। सीता ने कहा “आपके बिना यह अयोध्या मेरे लिए नर्क है। मैं आपके साथ जहां भी रहूं वही मेरे लिए अयोध्या समान है।” इस तरह राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकल पड़े।

पुत्र वियोग में दशरथ का स्वर्गवास (Dasharatha’s death due to son’s separation in Ayodhya Kand)

श्री राम के वनवास जाने से राजा दशरथ बहुत दुखी थे। उन्हें श्रीराम से अत्यधिक लगाव था। राम को 14 वर्ष के लिए दूर करने के बाद उन्हें बर्दाश्त नहीं हो पाई। उनकी तबीयत बहुत खराब रहने लगी। कुछ समय बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए।

अयोध्या कांड (Ayodhya Kand) राम-भरत मिलाप (Ayodhya Kand Ram-Bharat Milap)

जिस समय राम को वनवास भेजा जा रहा था। उस समय भरत अपने मामा के घर गए हुए थे। अयोध्या लौटने के बाद जब उन्हें इस बात की खबर हुई तब वह अपने माता कैकेयी पर बहुत क्रोधित हुए और क्रोध में अपनी मां का त्याग कर दिया।

भरत ने अयोध्या के सिंहासन पर बैठने से साफ इंकार कर दिया। अपने भाई राम को वापस अयोध्या लाने के लिए उन्हें वन में ढूंढने निकल गए। वन में भरत की मुलाकात राम, सीता और लक्ष्मण से हुई। भरत ने उन्हें अयोध्या वापस आने के लिए कहा लेकिन राम ने अपने पिता के वचनों का पालन करना अधिक जरूरी समझा वापस आने से मना कर दिया।

भरत राम की चरण पादुका को उनकी परछाई समझकर अयोध्या वापस आ गए। उन्होंने श्री राम की चरण पादुका को अयोध्या के सिंहासन पर रख दिया और सभी को कहा की जब तक श्री राम वापस नहीं आते तब तक उनकी चरण पादुका सिंघासन पर रखी रहेगी और मैं उनका सेवक बनकर तब तक राज्य का कार्यभार संभालूँगा। धीरे-धीरे रानी कैकेयी को अपनी गलती का एहसास हो जाता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण का दूसरा भाग अयोध्याकांड समाप्त होता है।

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Spiritual Tags:रानी कैकई की दो मांगें, कैकेयी ने क्यों मांगा था राम के लिए वनवास

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