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Home » Spiritual » Balkand Ramayana story in Hindi | रामायण बाल कांड राम का जन्म

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Balkand Ramayana story in Hindi | रामायण बाल कांड राम का जन्म

Posted on May 21, 2022June 25, 2022 By GeekCer Education No Comments on Balkand Ramayana story in Hindi | रामायण बाल कांड राम का जन्म
Balkand Ramayana story in Hindi | रामायण बाल कांड राम का जन्म

बालकांड (Balkand ) रामायण महाकाव्य ग्रंथ का पहला भाग है। श्री राम जी का बाल्यावस्था से माता सीता से स्वयंबर तक का वर्णन बाल कांड में होता है। Balkand में कई रोचक और प्रेरक कथाओं का वर्णन किया गया है। इसकी व्याख्या हम आगे करेंगे। इस कांड में 2080 लोग उल्लेखित हैं।

Table of Contents

  • संतान प्राप्ति के लिए दशरथ ने यज्ञ कराया (Dasharatha performed a yagna to get a child) – Balkand
  • राम का जन्म (Birth of Ram) – Balkand
  • राम और उनके भाई की शिक्षा दीक्षा (Education initiation of Ram and his brother – Balkand)
  • सीता माता की जन्म कथा | माँ सीता का जन्म कैसे हुआ?
  • माता सीता के स्वयंवर की कथा | राम और माता सीता का विवाह (Marriage of Ram and Mata Sita)
  • राम ने दिया सीता को वचन (Ram gave a promise to Sita)

संतान प्राप्ति के लिए दशरथ ने यज्ञ कराया (Dasharatha performed a yagna to get a child) – Balkand

अयोध्या नगरी के राजा का नाम दशरथ था। उनकी तीन पत्नियां थी – कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा अपने गुरु श्री वशिष्ठ से मिले और उनकी सलाह पर पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने की घोषणा की। इस यज्ञ का आयोजन ऋंगी ऋषि ने किया।

यज्ञ के बाद अग्निदेव प्रसन्न हुए और स्वयं प्रकट होकर राजा को प्रसाद दिया। राजा ने इस प्रसाद को अपनी तीन तीनों पत्नियों में बांट दिया। इस प्रसाद के सेवन से राजा को संतान प्राप्ति की खबर हुई। उनकी तीनों पत्नियां गर्भवती हो गई।

राम का जन्म (Birth of Ram) – Balkand

रानी कौशल्या के गर्भ से राम ने जन्म लिया। कैकेयी के गर्भ से भरत और सुमित्रा के गर्व से लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने जन्म लिया। चारों पुत्र दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण, बहादुर, आज्ञाकारी और यशस्वी थे। चारों भाइयों में बहुत प्रेम था सभी एक दूसरे के लिए मरने मिटने को तैयार रहते थे। इस तरह राजा दशरथ को संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त हुआ।

राम और उनके भाई की शिक्षा दीक्षा (Education initiation of Ram and his brother – Balkand)

राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को अपने गुरु वशिष्ठ के आश्रम भेजा ताकि वे चारों शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ अनुशासन में रहना भी सीख सके। इसलिए उनके शिक्षण की व्यवस्था महलों में ना करके, साधारण विद्यार्थी की भांति आश्रम भेज दिया। आश्रम में चारों राजकुमारों के साथ साधारण शिष्यों की भांति व्यवहार किया जाता था। सभी ने साधारण शिष्यों की तरह परिश्रम किया और शिक्षा ग्रहण की।

चारो राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण होने के बाद और अयोध्या लौटने से पहले ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से मिले और अपनी समस्या राजा के समक्ष रखी और बताया राक्षस गण वन में स्थापित उनके आश्रम को नष्ट कर रहे हैं और किसी प्रकार का यज्ञ करने में बाधा डाल रहे हैं। ऋषि विश्वामित्र ने राजा से अनुरोध किया कि राम और लक्ष्मण को आश्रम की रक्षा के लिए साथ में भेज दें। लेकिन राजा इस बात के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि वह चाहते थे कि शास्त्रों की शिक्षा के बाद राजकुमारों को महलों में ही आगे की शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राजन मान गए। गुरु वशिष्ट ने उन्हें समझाया कि राजकुमारों में व्यावहारिक ज्ञान होना आवश्यक है जो उन्हें ऋषि विश्वामित्र से प्राप्त होगा। इसलिए उन्हें उनके साथ भेज दें।

दशरथ ने राम लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ भेज दिया। वहां उन्होंने सभी राक्षसों का नाश कर दिया। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का अंत कर दिया और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र पार भेज दिया।

सीता माता की जन्म कथा | माँ सीता का जन्म कैसे हुआ?

कैसे हुआ था माता सीता का जन्म? बाल्मीकि जी ने Balkand में माता सीता के जन्म का भी वर्णन किया है। माता सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थी। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी। एक बार की बात है जब राजा जनक मैदान में हल चला रहे थे तब उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटकर एक सुंदर कन्या मिली। यह देख कर राजा जनक बहुत खुश हुए और अपनी बेटी मानकर महल ले आए और कन्या का नाम सीता रखा। इसलिए माता सीता को धरती पुत्री भी कहा जाता है। धरती से जन्म लेने वाली सीता का नाम “भूमिजा” भी है। कहते हैं माता सीता लक्ष्मी का अवतार है।

एक बार माता सीता मंदिर की सफाई कर रही थी। वहीं भगवान शिव का धनुष पड़ा था। सीता धनुष को उठाकर उस जगह को भी साफ करने लगी। यह देखकर राजन को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उस धनुष को भगवान परशुराम के अलावा कोई नहीं उठा पाता था। तभी राजन में निश्चय कर लिया कि वह अपनी पुत्री का विवाह उसी से करेंगे जो इस धनुष को सीता की भाँति उठा सके।

माता सीता के स्वयंवर की कथा | राम और माता सीता का विवाह (Marriage of Ram and Mata Sita)

धीरे-धीरे समय बीतता गया, माता सीता विवाह के योग्य हुई। अब राजन को अपनी पुत्री जैसी सर्वगुण संपन्न पुत्री के लिए योग्य वर खोजने की चिंता सताने लगी। अपनी पुत्री के लिए योग्य पुरुष की तलाश में राजा ने स्वयंवर रखने का फैसला लिया। राजा ने इस स्वयंवर के लिए कई राज्यों के राजाओं को निमंत्रण भेजा।

स्वयंवर का दिन आया राजा जनक ने सीता से विवाह करने वाले के समक्ष अपनी शर्त रखी कि इस शिव धनुष को उठाने वाले के साथ ही सीता का विवाह होगा। क्योंकि माता-सीता सुंदरता और गुण की धनी थी इसलिए इस स्वयंवर की खबर सुनकर बड़े-बड़े राजा इस स्वयंवर में भाग लेने के लिए दूर-दूर से आने लगे। इस स्वयंवर में ऋषि विश्वामित्र भी राम और लक्ष्मण के साथ स्वयंवर देखने के लिए पधारे। आपको बता दें कि इस स्वयंवर में रावण भी आए थे। सभी राजा अपना-अपना पराक्रम दिखाने के लिए एक एक करके धनुष उठाने का प्रयत्न करने लगे। लेकिन धनुष उठाना तो दूर कोई धनुष को हिला भी नहीं पाया।

यह सब देख कर राजा जनक की चिंता बढ़ने लगी तब ऋषि विश्वामित्र के आदेश पर श्री राम धनुष उठाने जाते हैं। श्री राम बड़े आराम से धनुष को आसानी से एक ही बार में उठा लेते हैं। और धनुष तोड़ देते हैं। इस तरह राजा जनक को अपनी पुत्री सीता के लिए दिव्य पुरुष मिल जाता है।

राजा जनक ने राम और सीता के विवाह के साथ अपनी तीनों पुत्र पुत्री का विवाह राजा दशरथ के पुत्रों से करवाने का फैसला किया। इस तरह सभी के आशीर्वाद से सीता का विवाह राम से, उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से, माधुरी का विवाह भरत से, और शुतकीर्ति का विवाह शत्रुघ्न से हुआ।

विवाह के पश्चात सभी अयोध्या आते हैं जहां उनका भव्य स्वागत किया जाता है।

राम ने दिया सीता को वचन (Ram gave a promise to Sita)

शादी के बाद माता सीता बहुत चिंतित थी तभी श्री राम ने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा। तब सीता ने जवाब दिया “आप तो राजकुमार है और राजकुमार की तो कई पत्नियाँ होती है, भविष्य में आप की भी होगी। तब तो आप मुझे भूल जाएंगे।” श्री राम ने माता सीता को वचन दिया कि उनकी एक ही पत्नी सीता रहेगी वे कभी दूसरा विवाह नहीं करेंगे। यह सुनकर माता सीता की खुशी का ठिकाना ना रहा। श्री राम अपने वचन के पक्के थे। उन्होंने आजीवन इस वचन का पालन किया।

यहाँ पर रामायण का प्रथम भाग “बालकांड” समाप्त होता है।

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