
भगत सिंह (Bhagat Singh) भारत देश के कुछ महान स्वतंत्रता सेनानियो में एक जो भारत देश के वीर और बहादुर पुत्र थे। आज हम बात करने जा रहे हैं इंकलाब जिंदाबाद जैसे आजादी के नारे लगाने वाले भगत सिंह की, भगत सिंह ने अपने देश को आजाद करने के लिए अपनी जान हंसी – हंसी कुर्बान कर दी। भगत सिंह (Bhagat Singh) जिन्हें शहीद भगत सिंह या Shaheed-E-Azam (शहीद-ए-आज़म) भगत सिंह के नाम से भी जाने जाते हैं। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब, लायलपुर जिले के बंगा नामक गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में पड़ता है।
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Bhagat singh’s birth, family, and early Life (भगत सिंह का जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन)
नाम | शहीद भगत सिंह |
जन्म | 27 सितंबर, 1907 |
जन्म स्थान | बंगा, लायलपुर जिला, पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान फैसलाबाद जिला, पंजाब, पाकिस्तान) |
माता-पिता | किशन सिंह संधू (पिता), विद्यावती कौर (माता) |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 (उम्र 23) लाहौर सेंट्रल जेल, लाहौर, लाहौर डिवीजन, पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान लाहौर जिला, पंजाब, पाकिस्तान) |
भगत सिंह का जन्म एक साधरण सिख किसान परिवार में हुआ था। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह ने अपनी 5वीं तक की पढ़ाई गांव के स्कूल से की बाद में उनके पिता ने उनका दखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल लाहौर में करवा दिया। कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत के आजादी के कार्य में लग गए। भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की। भगत सिंह के मन में अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने की भावना बहुत कम उम्र में ही आ गई थी जब उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग हत्याकाण्ड के बारे में सुना। इस निर्मम दुर्घटना से उनके मन में बहुत गहरा असर हुआ।
भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम में क्यों शामिल हुए? Bhagat Singh Freedom Fighter
भगत सिंह, गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। बहुत ही कम उम्र में इन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और बहुत बहादुरी से ब्रिटिशो का सामना किया। लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब गाँधी जी ने किसानों का साथ नहीं दिया और असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया तो भगत सिंह को बहुत दुख हुआ। इससे उनका अहिंसा के प्रति विश्वास कमजोर हो गया। गाँधी जी हिंसा के घोर विरोधी थे इसलिए उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। वही भगत सिंह ने ईंट का जवाब पत्थर से देने का फैसला ले लिया। इसलिए भगत सिंह ने चंद्र शेखर आजाद की गठित गदर दल में हिस्सा ले लिया।
काकोरी कांड की पूरी कहानी और भगत सिंह पर प्रभाव (Kakori incident and impact on Bhagat Singh)
काकोरी कांड ट्रेन से जा रहे ब्रिटिश खजाने को लूटने की घटना है। खजाने का उपयोग हाथियार ख़रीदने में किया। इस घटना को अंजाम हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के दस सदस्यों ने किया जिसमें प्रमुख रूप से रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिडी, असफाक उल्ला खान और चंद्रशेखर आजाद थे।
अंग्रेज़ों ने, इस घटना के बाद अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हाथियार उठाने, सरकारी खजाना लूटने और यात्रियों की हत्या करने के जुर्म में रामप्रसाद बिस्मिल सहित चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 को करावास की सज़ा सुनाई।
इस खबर से भगत सिंह बहुत क्रोधित हुए और चंद्र शेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए जिसका नाम बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य ऐसे नवयुवक तैयार करना था जो सेवा, त्याग, पीड़ा झेल सके तभी वो देश को आजाद करने में पूर्ण योगदान दे पायेगा।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला
17 दिसंबर 1927 को भगत सिंह और राजगुरु ने चंद्र शेखर आज़ाद की मदद से सहायक पुलिस अधिकारी अंग्रेज़ जे.पी. सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी लेकिन हत्या में जे.पी. सॉन्डर्स को जेम्स ए स्कॉट समझकर गलती से जे.पी. सॉन्डर्स की जान चली गयी। भगत सिंह, राजगुरु और चंद्र शेखर आज़ाद, लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए जेम्स ए स्कॉट की जान लेना चाहते थे।
सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का मकसद (The motive of throwing a bomb in the Central Assembly)
सेंट्रल असेंबली में बम जान लेने के मकसद से नहीं बल्कि भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार को भगत सिंह और उनके साथी क्रोधित होकर व्यक्त कर रहे थे और लोगो को जागरुक कर रहे थे। बम फेंकने के बाद आज़ादी और साम्राज्य मुर्दाबाद के नारे लगाना शुरु कर दिया और अपने साथ लाये हुए पर्चे फेंकने लगे जिसमे लिखा था “NOTICE” इसके बाद उसमे पहला वाक्य फ्रेंच शहीद अगस्त वैलां का था – “बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है।”
दिल्ली की विधानसभा में बम फेंकने का प्रमुख कारण दो बिल थी जो पारित होने जा रही थी जिसका नाम था “Public Safety Bill” और “Trade Dispute Bill“। जिसमे Trade Dispute Bill पास किया जा चुका था जिसके अंतर्गत मजदूरों द्वारा की जाने वाली भी तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगा दी गई थी वही “Public Safety Bill” पर अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल अपना फैसला सुनाने ही वाले थे। इस बिल के अनुसार सरकार किसी भी संदिग्ध पर बिना मुक़दमा चलाये उन्हें हिरासत में ले सकती थी।
“इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के नारे से विधानसभा गुंजने लगी भगत सिंह अपनी जिराफ्तारी चाहते थे इसलिये वहाँ से भागे नहीं और आत्मसमर्पण किया। लेकिन गिरफ्तार करते समय पुलिसकर्मी उनसे डर रही थी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर मुकदमा चलाया गया। अंग्रेज़ो ने झूठे तरीकों से ये साबित करने की कोशिश की कि गिरफ्तारी के वक्त उनके पास पिस्तौल थी जिसका भगत सिंह ने पुरजोर खंडन किया।
मुकद्दमा चलते समय भगत सिंह ने अपने ऊपर लगे गए अरोपो की सफाई दी और सभी को अपने द्वारा किये गये हिंसा के उद्देश्य को जागृत किया। उन्होंने अपने आप को आम हिंसक अपराधियों से अलग बताया। उनकी इन्हीं दलीलों से देश भर में ब्रिटिशो के ख़िलाफ़ जज़्बात बनने लगे।
भगत सिंह के जेल के दिन (Bhagat Singh’s jail days)
जेल में भगत सिंह ने क्या किया था? जेल में रहने के बावजूद भगत सिंह अपने क्रांतिकारी विचार से लोगो को प्रेरित करना बंद नहीं किया था। अपने लेखों में उन्होंने उन सबको अपना दुश्मन बताया है जो मजदूरों और किसानो का शोषण करतें हैं। वे लेखों और पत्रों के जरिये अपने विचार सभी तक पहुँचाते थे। भगत सिंह खुद को शहीद कहा करते हैं इसलिये बाद में उनका नाम ही शहीद भगत सिंह पड़ गया।
भगत सिंह ने जेल में रहने के बावजूद वहाँ के कैदियों के लिए भी आंदोलन किया। कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था, न उन्हें अच्छा खाना मिलता था, न ही कपड़ा। कैदियों की स्थिति ठीक करने के लिए भगत सिंह और उनके जेल के साथियो ने 64 दिन तक भूख हड़ताल किया। हड़ताल में उनके साथी यतेंद्रनाथ दास के प्राण भी चले गए। जेल में रह कर भगत सिंह ने एक लेख लिखा जिसका शीर्ष है – मैं नास्तिक क्यों हूँ ? जेल में भगत सिंह ने 2 साल बिताया।
लाहौर षडयंत्र कब हुआ और कौन – कौन थे? When did the Lahore Conspiracy happen and who were it?
भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को 1928 में लाहौर में हुए जॉन सॉन्डर्स की हत्या में दोषी पाया गया। इस घटना को लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद 7 अक्टूबर 1930 को अदालत में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सज़ा सुनाई गई। उनकी फांसी की माफ़ी की अपील कइयों ने की लेकिन सभी रद्द कर दी गई।
23 मार्च 1931 को शाम करीबन 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर के जेल में फांसी दे दी गई। अपने आखिरी वक्त में भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे जिसे वो समय कम होने के कारण ख़त्म नहीं कर पाए। फांसी पर जाते समय वो तीनों साथी गले मिलकर मस्ती में “मेरा रंग दे बसंती चोला” गाना गा रहे थे।
कहा जाता है कि उन तीनों की फांसी की तारीख 24 मार्च थी लेकिन उस समय पूरे देश में आक्रोश का माहौल था जिससे ब्रिटिश सरकार को डर था कि कहीं फांसी रोक न दिया जाये। इसलिये समय से पहले ही उन्हें फांसी देने का निर्णय लिया गया।
भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहीद दिवस, Martyr Day of Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत को याद कर के हम 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मानते हैं। उनका बलिदान देश की आजादी में गहरी छाप छोड़ गई है। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाने वाले न्यायधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था। 23 मार्च 1931 और मात्र 23 साल की उम्र वाले भगत सिंह जैसे देश रत्न को हमने खो दिया।
फांसी के बाद उनके शवों को सतलुज नदी के किनारे ले जकार घी के बजाय मिट्टी तेल डालकर ही जलाया जाने लगा। जलते हुए शरीर को नदी में फेंक ब्रिटिश पुलिस भाग गए। गांव वालो को जब ख़बर हुई तो उन्होंने विधिवत रूप से शवों का अंतिम संस्कार किया।
शहीद दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? शहीद भगत सिंह की पुण्यतिथि पर हर साल उनके बलिदान का सम्मान करने के लिए शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के सभी लोग उन्हें सम्मान देते हैं।
FAQ – Bhagat Singh
28 सितंबर 1907
23 March
जी.सी. हिल्टन
लाहौर के नेशनल कॉलेज
23 March 1931
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