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Home » Festival » Jagannath Rath Yatra History in Hindi | जगन्नाथ पुरी की कहानी

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Jagannath Rath Yatra History in Hindi | जगन्नाथ पुरी की कहानी

Posted on June 22, 2022June 25, 2022 By GeekCer Education No Comments on Jagannath Rath Yatra History in Hindi | जगन्नाथ पुरी की कहानी
Jagannath Rath Yatra History in Hindi | जगन्नाथ पुरी की कहानी

Jagannath Rath Yatra (जगन्नाथ रथ यात्रा) भारत में हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इस त्यौहार को पूरे देश में बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विशेष रूप से उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा का विशेष आयोजन नजर आता है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलराम और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। भगवान जगन्नाथ को राधा और कृष्ण की युगल मूर्ति का प्रतीक माना जाता है। उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। इस लेख में हम आज आपको जगन्नाथ यात्रा (जिसे रथयात्रा भी कहते हैं) से संबंधित कहानी, कथा, महत्त्व, इतिहास और परंपरा, रथ यात्रा निबंध (Story, Significance, History, Rath Yatra Essay) के बारे में बताने जा रहे हैं। अतः इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

Table of Contents

  • रथ यात्रा 2022 कब है? (Rath Yatra 2022)
  • क्यों मनाई जाती है रथ यात्रा? (Why is Rath Yatra celebrated?)
  • रथ यात्रा किस प्रकार मनाया जाता है? (How is Rath Yatra celebrated?)
    • बलराम जी का रथ
    • सुभद्रा जी का रथ
    • भगवान जगन्नाथ जी के रथ
    • रथ यात्रा का समापन
  • जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Significance of Jagannath Rath Yatra)
  • FAQ

रथ यात्रा 2022 कब है? (Rath Yatra 2022)

When is jagannath rath yatra 2022? हिंदू पंचांग के अनुसार रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस साल 2022 में रथयात्रा 1 जुलाई शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।

क्यों मनाई जाती है रथ यात्रा? (Why is Rath Yatra celebrated?)

रथ यात्रा के पूजन के पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां और कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं। एक इंद्रद्युम्र नामक राजा पूरे परिवार के साथ नीलांचल सागर के पास रहा करते थे। यह नीलांचल सागर वर्तमान समय में उड़ीसा के क्षेत्र में सम्मिलित है।

एक दिन राजा इंद्रद्युम्र को समुद्र में एक विशालकाय लकड़ी तैरती हुई दिखाई देती है। राजा के आदेश पर उस लकड़ी को निकाला गया। वह लकड़ी बहुत सुंदर थी। उस लकड़ी को देख कर राजा के मन में इस लकड़ी से भगवान जगदीश की मूर्ति बनाने का ख्याल आया। उसी क्षण वहां भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े बढ़ई के रूप में प्रकट हो गए। राजा ने उस बूढ़े बढ़ई को भगवान जगदीश की मूर्ति बनाने के लिए कहा। बढ़ई मूर्ति बनाने को तैयार हो गया लेकिन उसने राजा के समक्ष एक शर्त रखी कि “जब तक मैं कमरे में मूर्ति बनाऊंगा तब तक कमरे में कोई प्रवेश ना करें” राजा बढ़ई की शर्त मान लेता है। बढ़ई एक कमरे में मूर्ति बनाने लगता है।

कई दिन बीत जाने के बाद महारानी को चिंता होने लगी थी कि “इतने दिन बीत गए बिना कुछ खाए पिए कहीं उन्हें कुछ हो तो नहीं गया” अपने इस शंका के बारे में महारानी ने राजा को बताई। यह सुन कर महाराजा कमरे के अंदर जाने का निश्चय कर लेता है। जब महाराजा ने उस कमरे का दरवाजा खुलवाया तो वह बूढ़ा बढ़ई कहीं नजर नहीं आया। लेकिन लकड़ी की आधी बनी हुई श्री जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्ति वहां रखी थी। अर्धनिर्मित मूर्ति को देखकर राजा को दुःख हुआ। उसी समय वहाँ एक आकाशवाणी होती है “दुखी मत हो राजन, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं, मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित कर दो।

रथ यात्रा किस प्रकार मनाया जाता है? (How is Rath Yatra celebrated?)

वैसे तो रथ यात्रा पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है लेकिन उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में इस पूजन का भव्य आयोजन किया जाता है। रथ यात्रा के शुरू होने के साथ ही कई सारे पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं। इस ध्वनि को सुनकर सभी लोग मोटे-मोटे रस्सों से बंधे रथ को खींचने लगते हैं।

बलराम जी का रथ

रथ यात्रा में सबसे आगे बड़े भाई बलराम जी का रथ होता है। बलराम जी का रथ 43 फीट ऊंचा होता है। इस रथ को नीले-हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता है। इस रथ में 14 पहिए लगे होते हैं। इसमें बलराम जी के साथ गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला, शेषदेव, मुक्तेश्वर, नातंवारा, मृत्युंजय, हटायुध्य, प्रलांबारी विराजमान रहते हैं। इस रथ के लहराते झंडे को उनानी कहते हैं। इसे जिस मोटे-मोटे रस्सी से खींचा जाता है, उसे बासुकी नागा कहते हैं। बलराम जी के रथ का सारथी मताली होता है।

सुभद्रा जी का रथ

बलराम जी के रथ के थोड़ी देर बाद सुभद्रा जी का रथ चलता है। सुभद्रा जी का रथ 12 पहिए वाला, 42 फीट ऊंचा और लाल-काले रंग के कपड़े से सजा-धजा रहता है। सुभद्रा जी के रथ को अर्जुन चलाता है। इस रथ के ऊपर लहराते झंडे को नंदविक झंडा कहते हैं। इसे जिस रस्सी की सहायता से खींचा जाता है, उसे स्वर्णाचुड़ा नागनी कहते हैं। इस रथ में सुभद्रा जी के साथ चंडी, चामुंडा, मंगला, श्यामकली, वाराही, शलिदुर्गा, वनदुर्गा, उग्रतारा विराजमान रहती हैं।

भगवान जगन्नाथ जी के रथ

सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ जी के रथ को खींचा जाता है। जगन्नाथ जी के रथ को लाल व पीले रंगों के कपड़े से सजाया जाता है। इस रथ में 16 पहिए होते हैं। यह रथ 45 फीट ऊंचा होता है। इस रथ का सारथी दारूका होता है। इस रथ के ऊपर लहराते झंडे को त्रैलोक्यमोहिनी कहते हैं। इसे जिस रस्सी से खींचते हैं उसे शंखचुडा नागनी कहते हैं। इस रथ में जगन्नाथ जी के साथ वर्षा, गोवर्धन, नरसिंघा, राम, हनुमान, रुद्र, त्रिविक्रम, नारायण भी विराजमान रहते हैं।

रथ यात्रा का समापन

यह रथ यात्रा गुंदेचा मंदिर पहुंचकर पूरी होती है। इस मंदिर को भगवान की मौसी का घर कहा जाता है। इस जगह पर भगवान की प्रतिमा 9 दिन तक रखी जाती है। यहां भक्त भगवान की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान जगन्नाथ जी की वापसी की रथ यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Significance of Jagannath Rath Yatra)

Jagannath Rath Yatra का महत्व प्राचीन समय से चला आ रहा है, तभी इस त्योहार को प्राचीन काल से मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस दिन लोग दूर-दूर से रथयात्रा के पूजन के लिए आते हैं। पुराणों और ग्रंथों के अनुसार जगन्नाथ की रथ यात्रा को सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। इस वजह से भी रथ यात्रा के दिन भक्तों की भारी मात्रा में भीड़ दिखाई देती हैं। इस दिन भक्त अपने तमाम कष्टों को सहते हुए पूरे श्रद्धा मन से भगवान के रथ को खींचते हैं और प्रभु से अपने दुखों और कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन रथ को खींचने में सहयोग करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

FAQ

रथ यात्रा क्यों किया जाता है?

भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा को द्वारका दर्शन करने की इच्छा हुई। उनकी इच्छा को पूरी करने भगवान ने सुभद्रा को रथ से भ्रमण करवाया। तब से हर वर्ष इसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है।

रथ यात्रा का मतलब क्या होता है?

रथयात्रा हिंदुओं का एक पवित्र त्योहार है जो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है । इसमें लोग जगन्नाथ, बलराम और सुभद्राजी की मूतियाँ को रथ पर चढ़ाकर भ्रमण करते हैं ।

जगन्नाथ यात्रा कितने दिन चलती है?

रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से दसमी तक चली है लगभग 9 दिनों का यह त्योहार होता है।

जगन्नाथ पुरी की यात्रा कब निकलती है?

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को

भगवान जगन्नाथ के हाथ क्यों नहीं है?

बढ़ई के मना करने के बावजूद राजा इंद्रद्युम्र ने कमरे का दरवाजा खोल दिया। इसलिए मूर्ति के निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। इसी कारण तीनों मूर्तियों के हाथ और पैर के पंजे नहीं है।

भगवान श्रीकृष्ण की मौसी का नाम क्या था?

गुंडीचा मंदिर में स्थित देवी को भगवान श्रीकृष्ण की मौसी माना जाता है।

जगन्नाथ पुरी की क्या विशेषता है?

पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ का मंदिर स्थित है। पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां विराजमान हैं।

जगन्नाथ मंदिर में किसकी पूजा होती है?

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है।

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Festival Tags:मंदिर का झंडा कैसे होता है?, रथ यात्रा हिस्ट्री, जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा 2022, जगन्नाथ रथ यात्रा की 10 बातें, जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा

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