
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai) एक भारतीय रानी थी जो सभी महिलाओं के लिए आदर्श और बहादुरी और वीरता का प्रतीक है। भारत की महान वीरांगना के रूप में जाने जाने वाली झांसी की रानी वीर मनु की कहानी के बारे में जानेंगे अगर महिलाओं के सशक्तिकरण के विषय पर चर्चा करें तो रानी लक्ष्मीबाई की छवि जरूर सामने आती है। रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी और वीरता के चर्चे देश-विदेशों में भी फैले हुए हैं। रणभूमि में वीरगति को प्राप्त रानी लक्ष्मीबाई एक स्वाभिमानी और धर्मनिष्ठ महिला थी।
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपनी अहम भूमिका निभाई और अपनी अंतिम सांस तक अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ती रही। रानी लक्ष्मी बाई झांसी की रानी के नाम से भी जानते हैं।
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रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय (Biography of Rani Lakshmi Bai)
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी, वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। उनकी माता का नाम भागीरथी बाई था। उनके पिता एक मराठी थे और मराठा बाजीराव के दरबार में सेवक थे। रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था सभी उन्हें प्यार से “मनु” कह कर पुकारते थे।
जब रानी लक्ष्मीबाई 4 वर्ष की थी तभी उनकी मां का निधन हो गया था। इसलिए उनके पिता ने मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले गए। मनु का स्वभाव चंचल था इसलिए उन्हें सभी प्यार से “छबीली” कहकर बुलाते थे। शास्त्रों की शिक्षा के साथ-साथ मनु में शस्त्र विद्या भी अपने बचपन में ही सीख ली थी। निशानेबाजी, आत्मरक्षा, घुड़सवारी, घेराबंदी आदि भी बहुत ही कुशलता से सीखी।
झाँसी की रानी का वैवाहिक जीवन (Married life of Jhansi Ki Rani of Jhansi Lakshmi Bai)
1842 में रानी लक्ष्मीबाई की 14 वर्ष की आयु में झांसी के महाराज गंगाधर राव नेवलकर से विवाह हो जाता है। इस तरह काशी की मनु झांसी की रानी बन जाती है झांसी आने के बाद उनका नाम लक्ष्मी बाई रखा गया। समय बीतता गया। इस प्रकार 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
लेकिन दुर्भाग्यवश 4 महीने बाद ही पुत्र की मृत्यु हो गई। इस घटना से उनके परिवार को घोर दुख का सामना करना पड़ा। वहीं दूसरी ओर महाराज गंगाधर राव की पुत्र वियोग के कारण तबीयत खराब रहने लगी। महाराज की स्वास्थ्य अत्यधिक खराब हो जाने के कारण उन्हें पुत्र को गोद लेने की सलाह दी गई। दोनों ने मिलकर अपने रिश्तेदार के पुत्र को गोद लेने का फैसला लिया। पुत्र गोद लेने के पश्चात 21 नवंबर 1853 को महाराज गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। उस समय रानी लक्ष्मीबाई मात्र 18 वर्ष की थी। गोद लिए गए पुत्र का नाम शुरुआत में आनंद राव रखा गया फिर बाद में उसका नाम बदल कर दामोदर राव रख दिया गया।
गोद लिए गए पुत्र के उत्तराधिकार पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति जाहिर ना करें इसके लिए ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार की मौजूदगी में पुत्र को गोद लिया था।
झाँसी की रानी ने कैसे संभाला राज-पाठ?
महाराज गंगाधर राव की मृत्यु के कारण रानी लक्ष्मीबाई काफी आहत में थी। इतनी कठिन परिस्थिति होने के बावजूद रानी ने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। क्योंकि दत्तक पुत्र दामोदर राव की आयु कम थी। इसीलिए उन्होंने राज्य का उत्तराधिकारी स्वयं बनने का फैसला लिया।
अंग्रेजों की राज्य हड़प नीति का सामना (Faced with the British’s state Doctrine of Lapse policy)
झांसी की गद्दी को संभालने जब रानी लक्ष्मीबाई उत्तराधिकारी बनी। इस बात का ब्रिटिश सरकार ने विरोध किया। उस समय गवर्नर लॉर्ड डलहौजी हुआ करते थे। उन्होंने राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में मिलाने के इरादे से एक नियम बनाया था। इसे राज्य हड़प नीति, व्यपगत का सिद्धांत या गोद प्रथा निषेध की नीति के नाम से भी जाना जाता है। इस नियम के तहत जिन शासकों का उत्तराधिकारी पुत्र नहीं होता था। वह किसी पुत्र को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी नहीं बना सकते थे।
इस नियम की आड़ में ब्रिटिश सरकार झांसी को ब्रिटिश शासकों में मिलाना चाहती थी।
झांसी की रानी के अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की कहानी (Story of Jhansi ki Rani’s struggle against the British)
लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति के कारण महारानी लक्ष्मीबाई को बहुत संघर्ष करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार झांसी को अपने अंदर लेने के तमाम हथकंडे अपना रही थी। ब्रिटिश शासकों ने महारानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया और झांसी का खजाना भी ज़ब्त कर लिया। इसके साथ ही महाराज गंगाधर राव ने जो कर्ज लिया था उसकी रकम की वसूली महारानी लक्ष्मी बाई के वार्षिक आय से काटने का फैसला सुना दिया। इस वजह से महारानी लक्ष्मीबाई को झांसी का किला छोड़कर झांसी के रानी महल में जाकर रहना पड़ा।
इतनी कठिन परिस्थिति होने के बावजूद महारानी लक्ष्मीबाई घबराई नहीं और हिम्मत से हर परिस्थिति का सामना करती गई। और अपने राज्य झांसी को ब्रिटिश सरकार को न सौंपने के फैसले पर डटी रही।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका (Role of Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai in the First War of Independence of 1857)
7 मार्च 1854 में ब्रिटिश शासकों ने झांसी के खिलाफ एक सरकारी गजट जारी कर दिया। जिसके अंतर्गत झांसी को ब्रिटिश शासकों में मिलाने का आदेश दिया था। इस आदेश का रानी लक्ष्मीबाई ने खुले रूप से विरोध किया और कहा “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी” इसके बाद से ही ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह तेज हो गया।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत 10 मई 1857 से हुई थी। इस युद्ध की शुरुआत होने में देशभक्ति की भावना के साथ-साथ धार्मिक भावना भी जुड़ी हुई थी। उस दौरान बंदूक की गोली और कारतूस पर सूअर और गाय के मांस की परत चढ़ाई जाती थी। जिसे मुंह लगाने से हिंदू और इस्लाम दोनों धर्म का नाश होता था। क्योंकि हिंदू गाय को पूज्यनीय मानते थे और इस्लाम सूअर को अपवित्र। इस वजह से भी यह विद्रोह पूरे देश में फैल गया।
1857 में झांसी संग्राम का प्रमुख केंद्र था। रानी लक्ष्मी बाई झांसी की सुरक्षा के लिए सभी व्यवस्थाएं करने लगी। रानी लक्ष्मीबाई ने एक ख़ास सेना का गठन किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गई और उन्हें प्रशिक्षित किया गया। इस सेना के प्रमुख स्थान के रूप में झलकारी बाई को रखा गया। जो रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी।
1857 में ही पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के राजाओं ने भी झांसी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध का सामना रानी ने बहादुरी से किया और जीत हासिल कर ली।
1858 में ब्रिटिश शासकों ने फिर से झांसी पर चढ़ाई कर दी। दो हफ्तों की इस लड़ाई के बाद ब्रिटिश शासकों में शहर पर कब्जा कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई दामोदर राव को साथ लेकर झांसी से भागकर तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे ने लक्ष्मीबाई का साथ दिया और सेना की मदद से ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया।
कैसे शहीद हुई Jhansi Ki Rani लक्ष्मीबाई?
How was Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai martyred? 17 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी अंतिम लड़ाई किंग्स रॉयल के खिलाफ लड़ी। इसी लड़ाई के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उस समय वह ग्वालियर के पूर्वी क्षेत्र के कमान संभाल रही थी। उनकी सेना में पुरुषों के साथ महिलाएँ भी थी। अंतिम युद्ध में भी वो खूब वीरता के साथ लड़ी और लड़ते लड़ते बुरी तरह से घायल हो गई और घोड़े से गिर गई।
रानी लक्ष्मीबाई ने पुरुष पोशाक धारण कर रखा था। इसलिए अंग्रेज उनके शरीर को पहचान नहीं सके और रानी को युद्ध भूमि में छोड़ कर चली गई। इसके बाद उनके कुछ विश्वसनीय सैनिकों ने उन्हें पास के गंगादास मठ में लाए और उन्हें गंगाजल दिया। रानी ने अपने अंतिम इच्छा जाहिर की कि “कोई भी अंग्रेज उनके शरीर को हाथ नहीं लगाए”.
17 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के फूलबाग क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुई। उनकी मृत्यु के पश्चात एक साधु ने उनके शरीर को अग्नि दिया और स्थानीय लोगों के द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया।
उनकी मृत्यु के बाद ब्रिटिश शासकों के जनरल ह्यूरोज ने अपनी टिप्पणी में रानी लक्ष्मी बाई के बारे में कहा कि “रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुंदरता चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय थी और विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक भी थी”
रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी से प्रेरित किताबें और फिल्में (Books and movies inspired by Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai’s bravery)
- सुभद्रा कुमारी चौहान ने 1950 में “झांसी की रानी” पुस्तक लिखी।
- जय श्री मिश्रा ने 2007 में “रानी” पुस्तक लिखी।
- एक वीडियो गेम द ऑर्डर:1886″ 2015 में बनाया गया जो उनके जीवन से प्रेरित था।
- इसके अलावा टीवी पर कई धारावाहिक झांसी की रानी पर चलाई गई।
- फिल्मों में 1953 में द टाइगर एंड द फ्लेम” नामक फिल्म आई।
- “झांसी की रानी” 2009 में फिल्म आई।
- “मणिकर्णिका:द क्वीन ऑफ़ झांसी” 2019 की फिल्म भी रानी लक्ष्मी बाई के जीवन पर आधारित है।
Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai questions and answers
अंग्रेज कैप्टन ह्यूरोज के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी अंतिम लड़ाई लड़ी और शहीद हो गयी।
रानी लक्ष्मीबाई ने बचपन में शास्त्रों की विद्या के साथ साथ शास्त्र विद्या भी हासिल की। इसके अलावे उन्होंने निशानेबाजी, आत्मरक्षा, घुड़सवारी, घेराबंदी आदि भी बहुत ही कुशलता से सीखा।
रानी लक्ष्मीबाई एक स्वाभिमानी और धर्मनिष्ठ महिला होने के साथ साथ बहादुर और साहसी महिला भी थी। देश भक्ति की भावना उनमे जागृत थी।
रानी लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था।
रानी लक्ष्मीबाई ने एक महिला सेना का गठन किया था उस सेना की सेनापति झलकारी बाई हुआ करती थी। क्योंकि झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की हमशक़्ल भी थी इसलिए अंग्रेज़ो को गुमराह करने के लिए वो रानी की वेश भूषा में लड़ती थी।
शुरुआत में रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र का नाम आनंद राव रखा गया था फिर बाद में उनका नाम बदलकर दामोदर राव नावेलकर रखा।
महारानी लक्ष्मीबाई के पति का नाम गंगाधर राव नावेलकर और दत्तक पुत्र का दामोदर राव नावेलकर था।
रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया था लेकिन 4 महीने की आयु में ही पुत्र की मृत्यु हो गयी इसके बाद रानी ने एक पुत्र को गोद लिया इस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव नावेलकर था।
रानी लक्ष्मीबाई एक मराठी ब्राह्मण परिवार से संबंधित थी।
रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से यह मांग थी कि राजा की मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र दामोदर राव को राजा का उत्तराधिकार मान लिया जाये। लेकिन अंग्रेज़ो ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया।
रानी लक्ष्मीबाई की समाधि ग्वालियर के फूल बाग़ में स्थित है। यह समाधि भारत की महान महिला योद्धा की याद में बनाई गयी है।
महाराजा गंगाधर राव की दो पत्नियाँ थी। पहली पत्नी का नाम रमाबाई था। रमाबाई की मृत्यु हो जाने के बाद राजा ने दूसरी शादी रानी लक्ष्मीबाई से की थी।
झांसी का पुराना नाम बलवंत नगर था।
1842 में रानी लक्ष्मीबाई की 14 वर्ष की आयु में झांसी के महाराज गंगाधर राव नेवलकर से शादी हुई थी।
29 वर्ष
19 नवंबर 1828
काशी, वाराणसी
झांसी
रानी लक्ष्मीबाई के तीन घोड़े थे – पवन, बादल और सारंगी।
रानी लक्ष्मीबाई से घोड़ों के व्यापारी से दो एक जैसे दिखने वाले घोड़े ख़रीदे। एक घोड़े का दाम उन्होंने 1000 रु लगाया और दूसरे का 500 रु।
अंग्रेज कैप्टन ह्यूरोज के खिलाफ लड़ते लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गयी।
अंग्रेज कैप्टन ह्यूरोज के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी अंतिम लड़ाई लड़ी।
तात्या टोपे के लक्ष्मी बाई गुरू थे।
लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था सभी उन्हें प्यार से मनु बुलाते थे।
लक्ष्मी बाई महालक्ष्मी की परम भक्त थी।
4 वर्ष
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
लक्ष्मीबाई के बचपन के प्रिय खेल शस्त्र चलाना और घुड़सवारी करना था।
8 दिन
मणिकर्णिका
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