
लंका कांड (Lanka Kand) में राम सेतु निर्माण से लेकर रावण का अंत और राम, सीता और लक्ष्मण की अयोध्या वापसी की घटना का विवरण किया गया है। लंका कांड को युद्ध कांड भी कहा जाता है। लंका कांड (Lanka Kand) महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण का छठा भाग है। लंका कांड में कुल 5692 श्लोक सम्मिलित है। Lanka Kand में कुल 60 दोहें हैं। लंका कांड के बाद रामायण का अंतिम कांड उत्तरकांड आता है।
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राम सेतु का निर्माण लंका कांड में (Construction of Ram Setu in Lanka Kand)
माता सीता तक पहुंचने के लिए एक विशाल समुद्र को पार करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। समुद्र को पार करने में वानर सेना के दो प्रमुख वानर नल और नील ने मुख्य भूमिका निभाई। नल और नील ने इस विशाल समुद्र को पार करने के लिए राम सेतु का पुल बनाया। इस पुल को बनाने के लिए श्री राम का नाम लिखकर पत्थर से समुंद्र के बीचों बीच पुल बनाया गया। इस समुंद्र को रामेश्वर के नाम से जाना जाता है। इस तरह प्रभु श्री राम ने रामेश्वर की स्थापना की और भगवान शंकर की पूजा करके सेना सहित समुद्र के पार आ गए।
इस समाचार से रावण व्याकुल हो गया। रावण की पत्नी मंदोदरी ने रावण को समझाया कि प्रभु राम से बैर न ले और माता सीता को सम्मानपूर्वक लौटा दें, लेकिन रावण अपने अहंकार में चूर था। इसलिए अपनी पत्नी की बात नहीं मानी। उधर राम ने अपनी सेना सहित सुबेल नामक पर्वत पर आश्रय लिया।
अंगद को दूत बनाकर राम ने किया रावण को सावधान (By making Angad a messenger, Ram warned Ravana)
माता सीता को शांतिपूर्वक वापस लाने के लिए प्रभु श्री राम ने अंगद को दूत के रूप में रावण के पास भेजा। अंगद रावण के पास पहुँचा और रावण के समस्त योद्धाओं को चुनौती के रूप में अपने पैर जमीन पर रखकर सभी योद्धाओं को हिला कर दिखाने को कहा। इस पर रावण का कोई भी योद्धा उनके पैर को नहीं हिला पाया।
इसके बाद स्वयं रावण अंगद के पैर हिलाने को तैयार हुआ। इस पर अंगद ने रावण से कहा कि “पैर मेरे नहीं प्रभु श्रीराम के पकड़ो और उनसे क्षमा माँग कर माता-पिता को सम्मानपूर्वक लौटा दो” इस पर रावण आग बबूला हो गया।
हनुमान जी ने बचाई लक्ष्मण के प्राण संजीवनी बूटी लाकर (Hanuman ji saved Lakshman’s life by bringing Sanjeevani Booti)
माता सीता को वापस शांति पूर्वक लाने के लिए जब श्री राम नाकाम रहे, फिर युद्ध का आगाज हो गया। इस युद्ध में सबसे पहले लक्ष्मण और रावण के पुत्र मेघनाथ के बीच युद्ध शुरू हुआ। मेघनाथ ने इंद्र को परास्त किया था। इस वजह से ब्रह्मा जी ने मेघनाथ का नाम इंद्रजीत रखा। दोनों के बीच बहुत युद्ध हुआ। इस युद्ध में मेघनाद लक्ष्मण को शक्ति बाण से घायल कर देता है।
लक्ष्मण जी के प्राण खतरे आ जाते है। लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर हनुमान जी सुषेण वैद्य को लेकर आये। उन्होंने कहा कि लक्ष्मण जी के प्राण सिर्फ संजीवनी बूटी ही बचा सकती है। उनके कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने जाते हैं। लेकिन हनुमान जी को संजीवनी बूटी की पहचान की समझ नहीं थी। इसलिए उन्होंने पूरा पर्वत लक्ष्मण जी के पास ले जाने की सोचते हैं।
संजीवनी बूटी लाने के दौरान रावण ने हनुमान को रोकने के लिए कालनेमि को भेजा। लेकिन हनुमान ने कालनेमि का वध कर दिया। जब हनुमान जी संजीवनी पर्वत ला रहे थे, तो उन पर भरत की नजर पड़ी हनुमान को राक्षस समझने के संदेह में भारत ने बाण मारकर हनुमान को मूर्छित कर दिया। हनुमान जी के मुख से प्रभु श्री राम का नाम सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। फिर हनुमान जी से पूरी बात जाने पर उन्हें बहुत पछतावा होता है और अपने बाण में बैठाकर हनुमान जी को वापस लंका भेज देते है। इसके बाद संजीवी बूटी के उपचार से लक्ष्मण जी ठीक हो जाते हैं और दूसरे दिन अपनी शक्ति से मेघनाथ का अंत कर देते हैं।
युद्ध में कुंभकरण की भूमिका (Role of Kumbhakarna in Lanka Kand)
रावण ने कुंभकरण को क्यों जगाया? युद्ध में लड़ने के लिए रावण कुंभकरण को नींद से जगाने के लिए सैनिकों को भेजता है। कुंभकरण भी रावण को राम की शरण में जाने की सलाह देता है, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं होता। कुंभकरण रावण की आज्ञा का पालन करने युद्ध करने आ जाता है। प्रभु श्री राम के हाथों कुंभकरण को परम गति प्राप्त होती है।
राम और रावण का युद्ध, रावण का अंत (Ram Vs Ravana in Lanka Kand, the end of Ravana)
जब रावण राम से युद्ध करने युद्ध भूमि में आया तो उसमें विभूषण को देखा। विभीषण को शत्रु की सहायता करता देख रावण क्रोधित हो जाता है। रावण ने क्रोध में विभीषण को कटु वचन सुनाए और उसका वध करने के लिए शक्तिशाली अस्त्र से प्रहार किया। विभीषण को बचाने के लिए राम अस्त्र के सामने आ गए और घायल हो गए। राम के घायल होने के बाद विभीषण, हनुमान और सुग्रीव रावण से युद्ध करने लगे। जामवंत ने भी अपने भुजाओं से रावण पर हमला करके रावण को घायल कर दिया।
रावण पर लगा रणभूमि से भागने का कलंक
घायल रावण रथ पर गिर जाता है। रावण को अचेत देखकर उसका सारथी रावण को युद्धभूमि से दूर ले जाता है। रावण की आंखें खुलने पर जब उसने खुद को युद्धभूमि से बाहर देखा तो सारथी पर बहुत क्रोध किया। सारथी के कारण रावण पर युद्ध भूमि से भागने का कलंक लग गया। इसलिए रावण ने सारथी को युद्ध भूमि से चले जाने को कहा। रावण फिर युद्ध भूमि में पहुँचा और राम के साथ भीषण युद्ध फिर से शुरू हो गया। रावण ने राम पर कई विध्वंसक अस्त्रों से प्रहार किया। इस युद्ध में दोनों को कई चोटें आयी और सूर्यास्त होने पर युद्ध विराम हो गया।
दूसरे दिन के फिर से युद्ध शुरू हुआ। ब्रह्मा ने देवराज इंद्र को श्री राम की सहायता में भेजा। देवराज इंद्र ने अपना रथ और सारथी मातली को राम को दिया। प्रभु श्री राम ने देवराज इंद्र और ब्रह्मा को धन्यवाद करते हुए रथ स्वीकार किया।
राम और रावण के बीच कई दैवीय अस्त्रों का प्रयोग किया गया। युद्ध के दौरान रावण अपना रथ आकाश की ओर ले जाता है। राम भी अपने सारथी मातली को रथ को आकाश में ले जाने को कहते हैं। आकाश में भी दोनों के बीच भयानक युद्ध होता है। राम ने रावण का सिर काट दिया लेकिन जितनी बार राम रावण का सिर काटता उतनी बार नया सिर आ जाता है। यह देखकर राम को आश्चर्य होता है।
विभीषण ने राम को बताया रावण की मृत्यु का रहस्य
नीचे विभीषण यह दृश्य देख रहा था। विभीषण रावण की मृत्यु का रहस्य जानता था। इसलिए इस रहस्य को श्री राम को बताने आकाश की ओर उनके पास गया। विभीषण ने राम को बताया कि रावण की नाभि में अमृत है। रावण का अंत करने के लिए उन्हें उस अमृत को सुखाना होगा। इसके बाद राम ने अग्निय अस्त्र से रावण की नाभि पर प्रहार किया। जिससे उसका अमृत सूख गया। इसके बाद राम ने ब्रह्मास्त्र से प्रहार कर रावण का अंत कर दिया। अपनी अंतिम सांस में रावण ने प्रभु श्री राम का नाम लिया और भूमि पर रथ सहित गिर गया।
राम ने बनाया विभीषण को लंका का राजा (Ram made Vibhishana the king of Lanka)
रावण की मृत्यु के बाद राम ने लंका राज्य विभीषण को सौंप दिया। विभीषण का राज्याभिषेक बड़ी धूमधाम से किया गया। लंका की प्रजा भी रावण से संतुष्ट नहीं थी। विभीषण जैसे राजसी और न्यायप्रिय राजा पाकर लंका की प्रजा भी प्रसन्न थी।
माता सीता की अग्नि परीक्षा (Sita proved her purity through the Ordeal)
राक्षस रावण की मृत्यु के बाद माता सीता और राम का मिलन हुआ। लेकिन प्रभु राम को ना चाहते हुए भी माता सीता से अपनी पवित्रता को सिद्ध करने को कहते हैं। क्योंकि वह माता सीता को सभी के नजरों में पवित्र साबित करना चाहते थे। श्रीराम के आदेश के बाद माता सीता अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा देती है। इस अग्नि परीक्षा के बाद यह सिद्ध हो जाता है कि माता सीता अग्नि के समान पवित्र है।
राम की अयोध्या वापसी (Ram’s return to Ayodhya)
राम, सीता और लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास का समय समाप्त हो चला था। सभी अयोध्या में उनका इंतजार कर रहे थे। कार्तिक मास की अमावस्या को राम की वापसी अयोध्या में हुई। पुष्पक विमान में सवार होकर राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या आए। वहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया। इस खुशी में अयोध्यावासी ने उनका स्वागत दीप जलाकर किया। इसलिए इस दिन को हर साल दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
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