
पौराणिक कथाओं के अनुसार वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) जी जिन्हें हम महान ऋषि मुनि के रूप में जानते हैं, पहले डाकू हुआ करते थे। इस लेख में आज हम रामायण की कहानी विस्तार पूर्वक जानेंगे। रामायण एक ग्रंथ है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। रामायण राम + आयरण से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ “राम की जीवन यात्रा है” रामायण भगवान श्रीराम की महान गाथा है। जैसा कि आप जानते हैं रामायण का संस्कृत में रचना महर्षि वाल्मीकि ने किया था। रामायण के बारे में पढ़ने से पहले हम इसके रचनाकार महर्षि वाल्मीकि के बारे में थोड़ी जानकारी ले लेते हैं।
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महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा (Biography of Maharishi Valmiki)
नाम | महर्षि वाल्मीकि |
पुराना नाम | रत्नाकर |
पिता का नाम | प्रचेता |
माता का नाम | चर्षणी |
गुरु का नाम | नारद जी |
कहते हैं जीवन में कुछ ऐसी घटना होती है जो इंसान को बदल देती है। वैसी ही एक घटना ने वाल्मीकि जी को डाकू से ऋषि मुनि बना दिया। महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था। इस दिन को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाते हैं। कहते हैं इनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरूण (प्रचेत) से इनका जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि के माता का नाम चर्षणी था।
बचपन में वाल्मीकि जी को एक भील जाति की एक भीलनी में चुरा लिया था। इस कारण उनका लालन पालन भील समाज में हुआ और वे डाकू बन गए।
डाकू रत्नाकर से कैसे बने वाल्मीकि ऋषि मुनि (How did Ratnakar become Valmiki?)
रत्नाकर डाकू वाल्मीकि कैसे बना? वाल्मीकि जी के जीवन में एक समय था जब लोग उन्हें डाकू रत्नाकर के नाम से जानते थे। डाकू रत्नाकर अपने आसपास से आने वाले यात्रियों को लूटता था और अपने परिवार का भरण पोषण करता करता था। एक दिन नारद मुनि भी उसी इलाके से लौट रहे थे। नारद मुनि जी डाकू रत्नाकर की चपेट में आ गए। रत्नाकर नारद मुनि को मारने का प्रयास कर ही रहा था कि नारद जी ने उनसे पूछा कि “तुम ये अपराध क्यों करते हो? क्या कारण है?“
तब रत्नाकर ने जवाब दिया “अपने परिवार का भरण पोषण करने की करने के लिए मैं ऐसा करता हूँ” नारद जी ने उनसे पूछा जिस परिवार के लिए तुम ये कर रहे हो तो क्या वह तुम्हारे पापों का भी भागीदार बनने को तैयार हैं?”
रत्नाकर ने बड़ी विश्वास के साथ कहा “मेरा परिवार सदा मेरे साथ रहेगा” इस पर नारद मुनि ने कहा अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम्हें अपना सारा धन दे दूँगा लेकिन पहले तुम उनसे पूछ तो लो” तभी वह नारद मुनि को पेड़ से बांधकर इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अपने घर चला गया। घर आकर रत्नाकर ने अपने परिवार वालों और सभी मित्रों से यह सवाल किया। लेकिन सभी ने उसे उनके द्वारा किए गए पाप का भागीदार बनने से इंकार कर दिया। यह जानकर रत्नाकर को आश्चर्य हुआ।
उसके बाद वे नारद जी के पास पहुंचे और उन्हें आजाद कर दिया। और अपने द्वारा किए गए पापों का प्रायश्चित करने की इच्छा जाहिर की। इस पर नारद मुनि ने उन्हें राम नाम जपने का उपदेश दिया।
मरा-मरा बोलकर सीखा था राम कहना महर्षि वाल्मीकि जी ने
लेकिन बाल्मीकि जी राम राम की जगह अज्ञानता में मरा मरा का जाप करने लगे और तपस्या करने लगे। कई वर्षों की तपस्या के पश्चात उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह महर्षि वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि डाकू रत्नाकर से महान ऋषि मुनि बन गए उन्हें आदिकवि के नाम से भी जानते हैं।
महर्षि वाल्मीकि के बारे में प्रश्न उत्तर (Question and Answer about Maharishi Valmiki)
डाकू रत्नाकर
भगवान राम के शासनकाल में वाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन यानी शरद पूर्णिमा को हुआ था।
देवऋषि नारद जी
प्रचेता
महर्षि वाल्मीकि अपने प्रारंभिक जीवन में डाकू रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की संस्कृत भाषा में रचना की थी।
महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना की थी। यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि आदिकवि कहा जाता है क्योंकि आदि का अर्थ “प्रथम” होता है।
महर्षि वाल्मीकि के पिता का नाम प्रचेता था, जिन्हें वरुण के नाम से भी जानते है।
महर्षि वाल्मीकि की मुलाकात जब नारद जी से हुई, उन्होंने ही वाल्मीकि जी को राम नाम जाप करने का उपदेश दिया था। इसके बाद ही वाल्मीकि जी डाकू रत्नाकर से बदलकर महर्षि वाल्मीकि बन गए।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रेता युग में हुआ था।
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