
Prithviraj Chauhan का नाम इतिहास के महान और प्रतापी राजा में लिया जाता है। पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा हुआ करते थे। उन्होंने उत्तर पश्चिम भारत (राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश) में शासन किया। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही महान योद्धा थे। उन्होंने बचपन में ही योद्धा के सभी गुण सीख लिए थे। चौहान वंश में जन्मे पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिंदू शासक थे।
इस लेख के माध्यम से हम आपको धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान इतिहास हिंदी में, कहानी, कथा, जीवन परिचय, संयोगिता, प्रेम कहानी, जन्म, मृत्यु, युद्ध आदि (Dharti ka veer yodha Prithviraj Chauhan history in hindi, Story, Story, Biography, Sanyogita, Love Story, Birth, Death, War etc.) के बारे में बताने जा रहे हैं। इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
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सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय (Biography of Emperor Prithviraj Chauhan)
Dharti ka veer yodha prithviraj chauhan का जीवन परिचय
पूरा नाम | पृथ्वीराज चौहान |
उपनाम | राजपिथौरा, पृथ्वीराज तृतीय, भारतेश्वर |
जन्म | 1149 ईस्वी |
जन्म स्थान | गुजरात |
पिता का नाम | सोमेश्वर चौहान |
माता का नाम | कर्पूरा देवी |
भाई बहन | एक भाई (हरिराज) एक बहन (पृथा) |
पत्नी | 13 |
बच्चे | एक बेटा (गोविंदराज चौहान) |
राजवंश | चौहान वंश |
पराजय | मोहम्मद गौरी से |
जाति | हिंदू राजपूत |
राजगद्दी | दिल्ली और अजमेर |
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 ईस्वी में चौहान राजा सोमेश्वर चौहान के घर हुआ था। पृथ्वीराज चौहान का माता का नाम कर्पूरा देवी था। पृथ्वीराज का जन्म गुजरात में चालुक्य दरबार में हुआ था। पृथ्वीराज के एक भाई थे जिनका नाम हरिराज था और एक बहन थी जिनका नाम पृथा था। उनके पिता राजस्थान में अजमेर के राजा थे। कहा जाता है कि पृथ्वीराज का जन्म उनके माता-पिता के विवाह के 12 वर्ष बाद हुआ था।
पृथ्वीराज को मरवाने में कई राजनीतिक षड्यंत्र रचे गए। लेकिन इन सब से वह बचते हुए बड़े हुए। जब पृथ्वीराज 11 वर्ष के थे तब उनके पिता सोमेश्वर की मृत्यु हो गई। इतनी कम उम्र में वे राजा बन गए क्योंकि उस समय पृथ्वीराज नाबालिग थे। इसलिए राजगद्दी पर उनकी माता भी उनके साथ विराजमान हुई। एक महान पराक्रमी और बहादुर हिंदू राजपूत होने के साथ-साथ वे शब्दभेदी विद्या के भी ज्ञाता थे। जो उस समय बहुत ही कम राजाओं को आता था।
पृथ्वीराज चौहान ने 5 वर्ष की आयु में “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” से शिक्षा हासिल की। इस विद्यापीठ की स्थापना “विग्रहराज” के द्वारा की गई थी। बाद में इस विद्यापीठ को अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Dhai Din Ka Jhopra) नामक मस्जिद नाम दिया गया। इसी विद्यापीठ से पृथ्वीराज चौहान ने गुरु श्री राम जी से युद्ध कला और शस्त्र विद्या की शिक्षा प्राप्त की। 15 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज राजकीय गद्दी को पूर्ण रूप से संभाला था। कहते हैं पृथ्वीराज चौहान बहुत ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्हें संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा में महारत हासिल थी। इन सब के अलावा उन्हें मीमांसा, वेदांत, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान उनमें प्रचुर मात्रा में था।
सम्राट पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई की दोस्ती की कहानी (Story of friendship of Prithviraj Chauhan and Chandravardai)
पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई बचपन के मित्र थे। दोनों में बचपन से ही घनिष्ठ प्रेम था। दोनों में मित्रता के साथ भाई चारे जैसा संबंध था। चंद्रवरदाई अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे। अनंगपाल तोमर वंश के राजा हुआ करते थे। चंद्रवरदाई ने दिल्ली का कार्यभार संभाला था। उन्होंने पृथ्वीराज की सहायता से पिथौरागढ़ का निर्माण करवाया। पिथौरागढ़ अब दिल्ली के पुराने किले के नाम से प्रसिद्ध है। चंद्रवरदाई, पृथ्वीराज चौहान के दरबार के दरबारी कवि थे। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज के जीवन पर “पृथ्वीराज रासो” नामक पुस्तक भी लिखी थी।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान कैसे बने दिल्ली के राजा (How did Prithviraj Chauhan become the king of Delhi?)
पृथ्वीराज की माँ कर्पूरा देवी के पिता अनंगपाल दिल्ली के राजा हुआ करते थे। कर्पूरा देवी अनंगपाल की एकमात्र संतान थी। उन्हें कोई पुत्र नहीं था। इस वजह से वे हमेशा इस बात से परेशान रहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली के गद्दी पर कौन बैठेगा। इस बात पर विचार करते हुए महाराजा अनंगपाल ने अपनी बेटी और दामाद को बुलाया और पृथ्वीराज को उत्तराधिकारी बनाने की बात कही। इस प्रकार तीनों की सहमति से पृथ्वीराज का दिल्ली की गद्दी पर राज्याभिषेक किया गया और उन्हें दिल्ली सौंप दी गई।
सम्राट पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी (Prithviraj Chauhan and Sanyogita love story)
पृथ्वीराज और संयोगिता के बीच प्रेम उनकी पहली मुलाकात में ही हो गया था। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी। राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान से नफरत करते थे। इसलिए वे पृथ्वीराज और संयोगिता के संबंध के सख्त खिलाफ थे। राजा जयचंद हमेशा पृथ्वीराज की बेज्जती का मौका ढूंढते रहते थे। जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें उन्होंने सभी पराक्रमी और शूरवीर राजाओं को आमंत्रित किया परंतु उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रण नहीं भेजा और पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के लिए उनकी मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रख दी।
जब संयोगिता हाथ में वरमाला लिए महफिल में उपस्थित राजाओं की ओर देख रही थी। तभी उनकी नजर द्वार पर स्थित पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ती है। संयोगिता पृथ्वीराज की मूर्ति को वरमाला पहना देती है। उसी समय पृथ्वीराज चौहान अपनी प्रेमिका संयोगिता को साथ ले जाने आ जाते हैं। संयोगिता अपनी मर्जी से पृथ्वीराज के साथ दिल्ली चली आती है। वहां विधिपूर्वक उनका विवाह होता है। इस बात से राजा जयचंद बहुत क्रोधित होते हैं।
पृथ्वीराज चौहान और नागार्जुन का युद्ध (Battle of Prithviraj Chauhan and Nagarjuna)
यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान की पहली सैन्य उपलब्धि थी। नागार्जुन, पृथ्वीराज चौहान के चाचा विग्रहराज चतुर्थ के पुत्र थे। नागार्जुन ने पृथ्वीराज चौहान के राज्याभिषेक के खिलाफ विद्रोह किया था।
गुड़ापुर नामक स्थान पर नागार्जुन का कब्जा था। नागार्जुन को हराकर पृथ्वीराज चौहान ने गुड़ापुर को अपने कब्जे में ले लिया।
पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी का युद्ध (Battle of Prithviraj Chauhan and Mohammad Ghori)
मोहम्मद गौरी ने सिंध और पंजाब को जीतते हुए चौहानों के पश्चिम में भी अपना कब्जा कर लिया था। उन्होंने अपनी राजधानी पंजाब बना ली थी। अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए उसने पूर्व की ओर से आक्रमण करना शुरू किया। जिसमें उन्हें पृथ्वीराज चौहान का सामना करना पड़ा। उस समय के मुस्लिम लेखकों के दस्तावेजों के अनुसार पृथ्वीराज और गौरी के बीच केवल दो युद्ध हुए थे। लेकिन हिंदू और जैन लेखकों के अनुसार पृथ्वीराज और गौरी के बीच कई युद्धों का वर्णन मिलता है। जिसमें पृथ्वीराज के मरने से पहले कई बार मोहम्मद गौरी को हार का सामना करना पड़ा था। पृथ्वीराज और गौरी के बीच दो प्रमुख लड़ाई तराइन का प्रथम युद्ध और तराइन का द्वितीय युद्ध है।
तराइन का प्रथम युद्ध – 1191 (First Battle of Tarain – 1191 )
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईस्वी में हुई थी। तराइन के युद्ध को तरावंडी का युद्ध भी कहते हैं। मोहम्मद गौरी का पूरा नाम मुईजुद्दिन मोहम्मद बिन साम था। यह तराइन नामक युद्ध स्थल वर्तमान समय में हरियाणा के करनाल और थानेश्वर के बीच स्थित है। मोहम्मद गोरी लाहौर को छीनने के बाद भारत की ओर प्रवेश करने की तैयारी में था। पृथ्वीराज अपने राज्य के विस्तार और व्यवस्था पर हमेशा ध्यान देते थे। उनकी इच्छा पंजाब को अपने राज्य में शामिल करने की हुई। पंजाब पर गौरी का कब्जा था।पंजाब को जीतने के लिए पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी से युद्ध करने का निर्णय किया। इस युद्ध के लिए पृथ्वीराज ने विशाल सेना का निर्माण किया और पंजाब की ओर निकल पड़े।
अपनी युद्ध क्षमता से उसने हांसी, सरस्वती और सरहिंद के किलो पर जीत हासिल कर ली। इस दौरान अनहीलवाडा नामक जगह पर पृथ्वीराज के विरुद्ध विद्रोह किया जा रहा था। इस विद्रोह को दबाने पृथ्वीराज अनहीलवाडा चले गए। उनकी गैर मौजूदगी में गौरी ने वापस सरहिंद के किले पर अपना कब्जा कर लिया। इसके बाद तराइन नामक स्थल पर पृथ्वीराज और गौरी के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में पृथ्वीराज की सेना ने गौरी की सेना को धूल चटा दी। इस युद्ध में गौरी के कई सैनिक डर कर भाग गए और बाकी को बुरी तरह कुचल दिया गया। इस युद्ध में मोहम्मद गौरी बुरी तरह घायल हो गया था। इस युद्ध में गौरी भागने में कामयाब रहा। इस युद्ध के बाद तुर्क की सेना को वापस पृथ्वीराज से युद्ध करने की हिम्मत नहीं हुई।
तराइन के प्रथम युद्ध में जीत हासिल होने से पृथ्वीराज को 7 करोड़ रुपए की धन संपदा प्राप्त हुई। इस धनसंपदा को उन्होंने अपने सैनिकों में बांट दिया।
तराइन का द्वितीय युद्ध (Second Battle of Tarain)
पृथ्वीराज चौहान के जयचंद की बेटी संयोगिता के अपहरण कर विवाह कर लेने की बात से जयचंद के मन में पृथ्वीराज से बदले की भावना आ गई थी। जयचंद कन्नौज के राजा थे। जयचंद को मोहम्मद गौरी की हार की खबर थी और उसे यह पता चला कि गौरी भी पृथ्वीराज से बदला लेना चाहता है। इस खबर से जयचंद बहुत खुश हुआ। क्योंकि वह अकेले पृथ्वीराज का सामना नहीं कर सकता था। जयचंद ने सोचा गौरी की मदद करने से पृथ्वीराज से उसका बदला भी पूरा हो जाएगा और दिल्ली की गद्दी भी उसे हासिल हो जाएगी। जयचंद ने अपने दूत के जरिए गौरी को संदेशा भेजा और उसे सैन्य सहायता देने का वादा किया। इसके बाद गौरी पृथ्वीराज को हराने का षड्यंत्र रचने लगा। इस बात की खबर पृथ्वीराज को हुई। वह भी अपनी सेना तैयार करने में लग गया।
सभी राजाओं ने क्यों किया पृथ्वीराज की मदद करने से इंकार
पृथ्वीराज ने कई राजाओं से सैन्य सहायता मांगी। लेकिन सभी राजा पृथ्वीराज, संयोगिता के अपहरण कर शादी कर लेने की बात से नाराज थे इसलिए सभी ने पृथ्वीराज की मदद करने से साफ इंकार कर दिया। सभी कन्नौज के राजा जयचंद के कहने पर गौरी की पक्ष में अपनी सैन्य सहायता भेजने को तैयार हो गए थे। तराइन का द्वितीय युद्ध फिर से पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज की ओर से 3 लाख और गौरी की सेना से 1 लाख 20 हज़ार सैनिक लड़ रहे थे। गौरी के घुड़सवार पृथ्वीराज के सैन्य हाथियों को घेरकर बाण चलाना शुरू कर दिया। जिससे हाथी घबराकर अपनी ही सेना को रौंदने लगी।
इस लड़ाई में हिंदुस्तान की एकता बुरी तरह खंडित हुई राजपूत भाई दूसरे राजपूत भाई का बड़ी वीरता से गला काट रहे थे। इस युद्ध के बाद भारत पर गैर हिंदुस्तानी का राज होने लगा। इस युद्ध में गौरी की सेना ने किसी भी युद्ध की मर्यादा को नहीं माना। वे रात में भी घुसपैठ करके पृथ्वीराज की सेना के साथ सोते हुए भी मार काट कर रही थी। जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज की पराजय हुई। युद्ध में विजय पाने के बाद गौरी ने जयचंद को भी नहीं छोड़ा। जयचंद को मार कर उसने कन्नौज सहित अजमेर, पंजाब, दिल्ली और संपूर्ण भारत पर अपना अधिपत्य कर लिया। इसके बाद गौरी अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का राज पाठ सौंपकर वापस अफगानिस्तान चला गया। इस तरह कुतुबुद्दीन ऐबक भारत का गवर्नर बन गया।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु की अमर कहानी (The immortal story of Prithviraj Chauhan’s death)
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई? पृथ्वीराज रासो के अनुसार तराइन के दूसरे युद्ध में विजयी होने के बाद गौरी ने पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी (अफ़ग़ानिस्तान) ले गया। वहां पृथ्वीराज चौहान पर बहुत बुरा व्यवहार किया गया। पृथ्वीराज की आंखें गरम छड़ डाल कर निकाल ली गई। जिससे पृथ्वीराज अंधा हो गया। लेकिन फिर भी पृथ्वीराज ने अपना साहस और धैर्य नहीं खोया। उन्होंने अपने मित्र चंद्रवरदाई के साथ मिलकर शब्दभेदी बाण के जरिए गौरी को मारने की योजना बनाई।
गौरी ने तीरंदाजी की प्रतियोगिता रखी थी। इस प्रतियोगिता में पृथ्वीराज ने भी भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में पृथ्वीराज की प्रशंसा करते हुए जैसे ही गौरी बोला वैसे ही पृथ्वीराज ने अपनी कौशल का प्रदर्शन करते हुए उस पर बाण चला दिया। इस शब्दभेदी बाण से मोहम्मद गौरी मारा गया। इसके बाद गौरी की सेना पृथ्वीराज और चंदबरदाई को घेरने लगी। पृथ्वीराज और चंदबरदाई को तुर्क के सैनिकों के हाथों मरना मंजूर नहीं था। इसलिए दोनों ने एक दूसरे की जान ले ली।
पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर बनी फिल्म (Film on the life of Prithviraj Chauhan)
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन और उनके पराक्रम पर बॉलीवुड में “सम्राट पृथ्वीराज” नामक फिल्म बनाई गई है। इस फिल्म में पृथ्वीराज की भूमिका अक्षय कुमार कर रहे हैं और राजकुमारी संयोगिता की भूमिका मिस इंडिया रह चुकी मानुषी छिल्लर कर रही है। इस फिल्म में सोनू सूद चंद्रवरदाई के रूप में नजर आ रहे हैं। संजय दत्त भी इस फिल्म में पृथ्वीराज के चाचा के रूप में दिख रहे हैं। इस फिल्म के निर्देशक प्रकाश द्विवेदी है।
FAQ
13
गौरी को मरने के बाद, पृथ्वीराज और चंदबरदाई को तुर्क के सैनिकों ने घेर लिया। उन्हें तुर्क के सैनिकों के हाथों मरना मंजूर नहीं था। इसलिए दोनों ने एक दूसरे की जान ले ली।
1192 ईस्वी
पृथ्वीराज चौहान का एक बेटा था जिसका नाम गोविंदराज चौहान था।
पृथ्वीराज के कवच भाला, कवच, ढाल, और तलवार का कुल वजन मिलाकर 200 किलो से अधिक का था।
नहीं, ये सिर्फ़ एक अफवाह है जो हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए फैलाई गई है।
कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी राजकुमारी संयोगिता पृथ्वीराज की प्रेमिका थी।
पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद संयोगिता ने जौहर को स्वीकार कर लिया था।
पृथ्वीराज चौहान
अफगानिस्तान में
मोहम्मद गौरी
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के एक बेटे थे जिसका नाम गोविंदराज था। उनकी कोई बेटी नहीं थी।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 ईस्वी को गुजरात में हुआ।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जयंती 1 जून को मनाया जाता है।
चंद्रवरदाई पृथ्वीराज के मित्र और उनके दरबारी कवि भी थे।
पृथ्वीराज चौहान के पिता का नाम सोमेश्वर चौहान था।
पृथ्वीराज रासो
मोहम्मद गौरी (Mohammad Ghori)
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