
सुंदरकांड रामायण (Sunder kand ramanyan) का पांचवा भाग है। इसके अंतर्गत हनुमान का लंका में प्रवेश और लंका दहन जैसी कांड सम्मिलित है। सुंदरकांड कांड में महर्षि वाल्मीकि ने मुख्य रूप से हनुमान जी के यश का गुणगान किया है। सुंदरकांड कथा रामायण का सबसे भिन्न कांड है, क्योंकि संपूर्ण रामायण राम के गुणों और उनकी महानता को दर्शाती है, लेकिन सुंदरकांड हनुमान जी के गुण व शक्तियों और यश का गुणगान करती है।
Sunder kand (सीता की खोज में लंका दहन) में जानेंगे कि Sundar kand ramanyan hindi me, राम ने लंका जाते समय हनुमान को क्या दिया, हनुमान जी ने श्री राम के आदेश पर लंका में प्रवेश किया, किसका सामना हनुमान जी ने समुद्र पार करते समय किया, हनुमान विभीषण मिलन, अशोक वाटिका में प्रवेश, हनुमान जी ने रावण की स्वर्ण लंका में आग लगा दी, लगातार 21 दिनों तक सुंदरकांड पाठ करने का नियम।
सुंदर कांड पाठ के क्या लाभ हैं? सुंदरकांड का पाठ करने से जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती है। सुंदरकांड का पाठ लगातार 21 दिन तक करने का नियम है। इस पाठ को अकेले करने पर ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 4:00 से 6:00 के बीच करना चाहिए। लेकिन समूह के साथ पाठ करने पर शाम को 7:00 बजे के बाद का समय उत्तम माना जाता है। सुंदरकांड का पाठ मंगलवार, शनिवार, पूर्णिमा और अमावस्या को करना श्रेष्ठ माना जाता है।
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हनुमान जी की लंका यात्रा (Hanuman ji’s journey to Lanka – Sunder Kand की शुरुआत)
माता सीता को ढूंढने हनुमान जी आगे आए। लंका की ओर प्रस्थान करने के लिए हनुमान जी ने अपना रूप विशालकाय बना दिया। लंका पहुंचने के लिए उन्होंने विशाल समुद्र पार किया। लंका की ओर यात्रा करने के दौरान हनुमान जी के रास्ते में मेनका नामक पहाड़ आया। उस पहाड़ ने हनुमान जी को विश्राम करने की बात कही लेकिन हनुमान जी ने उनकी बात नहीं मानी और उत्तर दिया कि “जब तक मैं प्रभु राम का कार्य पूर्ण कर ना लूं, तब तक मेरे जीवन में विश्राम का कोई स्थान नहीं है।” यह बोलकर हनुमान जी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए।
देवताओं ने भी हनुमान की परीक्षा ली। उन्होंने सांपों की माता सुरसा को हनुमान जी को रोकने के लिए भेजा। सुरसा हनुमान को खाने का प्रयास करने लगी लेकिन हनुमान उसके मुख से बाहर निकल आये और आगे बढ़ गए। समुद्र पार करने के दौरान हनुमान जी की मुलाकात छाया नामक राक्षसी से होती है जो उन्हें समुद्र पार करने से उन्हें रोक रही थी। हनुमान जी ने राक्षसी छाया का वध कर दिया और आगे बढ़ गए।
हनुमान जी का लंका में प्रवेश (Hanuman ji’s entry into Lanka)
समुद्र पार करने के बाद हनुमान जी ने लंका की ओर देखा। लंका का द्वार बहुत बड़ा था और पूरा लंका सोने से बना हुआ था। लंका के द्वार की रक्षा लंकिनी नामक राक्षसी कर रही थी। हनुमान जी ने लंका में प्रवेश करने के लिए अपना विशाल रूप बदलकर चींटी की भांति छोटे हो गए। हनुमान जी लंका के द्वार से अंदर जाने लगे लेकिन लंकिनी ने उन्हें देख लिया और उन्हें रोकने लगी। तब हनुमान जी ने लंकिनी को जोरदार घूंसा मारकर गिरा दिया। लंकिनी डर गई और हनुमान को भीतर जाने दी।
हनुमान ने लंकापति रावण के महल में प्रवेश किया और हनुमान जी माता सीता को ढूंढने लगे। माता सीता को महल में न पाकर हनुमान जी महल के बाहर आ गए। उन्हें एक छोटा सा महल दिखाई पड़ा जिसमे छोटा सा मंदिर बना था और उसमें एक तुलसी पौधा भी था। हनुमान जी यह देख कर बहुत हैरान हुए और सोचने लगे असुरों की बस्ती में श्री राम का भक्त कौन हो सकता है।
हनुमान का विभीषण से मुलाकात (Hanuman meets Vibhishana – Sunder Kand)
असुरों के बीच राम का भक्त कौन है? यह जानने की इच्छा में हनुमान ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और महल की ओर जाने लगे। जब विभीषण ने हनुमान को देखा तो कहा “आपको देखकर मेरे मन को परम सुख मिल रहा है। क्या आप स्वयं श्रीराम हो?” हनुमान ने उनसे उनका परिचय पूछा तो विभीषण ने उत्तर दिया “मैं रावण का भाई विभीषण हूँ” यह सुनकर हनुमानजी अपने असली रूप में आ गए और अपना परिचय दिया। यह भी बताया कि वे यहाँ क्यों आए हैं। विभीषण ने हनुमान जी को माता सीता का पता बताया और हनुमान से निवेदन किया कि वे उन्हें श्री राम के दर्शन करवा दे।
हनुमान जी का अशोक वाटिका में प्रवेश (Hanuman ji’s entry into Ashok Vatika)
विभीषण से हनुमान जी को पता चला कि रावण ने माता सीता को अशोक वाटिका में कैद करके रखा है। एक बार फिर से हनुमान जी ने छोटा सा रूप धारण किया और अशोक वाटिका की ओर बढ़ चले। अशोक वाटिका पहुंचने के बाद हनुमान ने देखा कि रावण भी अपने साथियों के साथ अशोक वाटिका पहुँच गया है। रावण सीता को विवाह करने के लिए हर तरह से बाध्य कर रहा था, लेकिन माता सीता नहीं मानी। इसके बाद रावण ने सभी राक्षसी को माता सीता को डराकर विवाह करने के लिए मनाने के लिए कहा। समस्त राक्षसी में एक त्रिजटा नामक राक्षसी थी जो माता सीता की मदद करती थी और उनका ख्याल रखती थी। सभी राक्षसी के चले जाने के बाद हनुमान जी ने श्री राम की अंगूठी माता सीता के सामने गिरा दिया।
माता सीता को हनुमान जी पर संदेह
अंगूठी पर प्रभु श्री राम का नाम अंकित देखकर माता सीता भावुक हो गई परंतु माता सीता को यह संदेह हुआ कि कहीं यह दुष्ट रावण की कोई चाल तो नहीं। तब माता सीता पुकारने लगी कि “कौन है जो यह अंगूठी लेकर आया है?” तभी हनुमान जी माता सीता के सामने प्रकट हुए और उन्हें चरण स्पर्श किया। हनुमान जी ने अपना परिचय दिया और सारी बात उन्हें बताई।
माता सीता ने हनुमान जी से श्री राम का हाल पूछा तो हनुमान ने उत्तर दिया कि “माता प्रभु श्री राम ठीक है वह आपको बहुत याद करते हैं और उन्होंने कहा है कि वे शीघ्र ही आपको लेने आयेंगे।” माता सीता हनुमान को अपना जुड़ामणि देती है और कहती है कि “यह प्रभु राम को देना और कहना कि मैं अपने स्वामी का इंतजार कर रही हूँ।”
हनुमान ने किया रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध (Hanuman kills Ravana’s son Akshay Kumar – Sunder Kand)
अशोक वाटिका से लौटते वक्त हनुमान जी को बहुत भूख लग जाती है। हनुमान माता सीता की आज्ञा से अशोक वाटिका में लगे पेड़ों के फल को तोड़कर खाने लगते हैं। फलों को खाने के साथ-साथ वो पेड़ों को उखाड़कर फेंकने लगते है। लंका के सैनिकों ने जब यह देखा तो उन्हें मारने का प्रयास करने लगे। लेकिन हनुमान ने सभी को मार दिया।
इस बात की खबर जब रावण को हुई तो उन्होंने अपने पुत्र अक्षय कुमार को हनुमान का वध करने के लिए भेजा। लेकिन पवनसुत हनुमान ने अक्षय कुमार का भी वध कर दिया। अपने बेटे की मौत सुनकर रावण तिलमिला गया। फिर रावण ने अपने दूसरे बेटे मेघनाद को हनुमान को जिंदा पकड़ने के लिए कहा। हनुमान और मेघनाथ के बीच युद्ध हुआ। हनुमान को पकड़ न पाने पर मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र का सम्मान करते हुए हनुमान जी स्वयं बंधक बन जाते हैं।
हनुमान ने किया लंका दहन (Hanuman burnt Lanka – Sunder Kand)
हनुमान जी को रावण की सभा में पेश किया गया। रावण क्रोधित होकर हनुमान जी के लिए अपशब्द बोलता है और उनका अपमान करता है। लेकिन इन सब का हनुमान पर कोई असर नहीं होता और हंसने लगते हैं। उनकी हंसी देखकर रावण को और गुस्सा आ जाता है और हनुमान जी से कहता है कि “तुम्हें मृत्यु का डर नहीं लगता। तुम्हें यहाँ किसने भेजा है?” तब हनुमान जी ने अपना परिचय देते हुए कहा “जिन्होंने महान शिव के धनुष को तोड़ा जिन्होंने खर दूषण और बाली का संहार किया और जिनकी पत्नी का तुमने छल से अपहरण किया है। मैं उन्हीं का दूत हनुमान हूँ।” इसके साथ ही हनुमान जी ने रावण को राम से माफी मांग कर माता सीता को राम को सौंपने की बात कही।
विभीषण ने रावण को बताई दूत को मारने की नीति
रावण हनुमान की बात सुनकर हंसने लगा और मंत्रियों को हनुमान को मार डालने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ विभीषण आए और बोले दूत को मारना नीति के विरुद्ध है। इसलिए कोई और दंड दीजिए। सभा में मौजूद सभी मंत्रियों हनुमान जी के पूँछ में आग लगाने की सलाह दी। जैसे ही हनुमान जी के पूँछ में आग लगी, हनुमान जी बंधक मुक्त होकर एक महल से दूसरे महल कूदते गए। सिर्फ विभीषण को छोड़कर पूरी लंका आग से जलने लगी। इस तरह रावण की लंका जलकर राख हो जाती है। इसके बाद हनुमान जी समुद्र के किनारे आग को बुझाते हैं और वापस विशाल रूप धारण करके राम के पास पहुँचते हैं। राम और लक्ष्मण को सीता की खबर देते हैं और सीता के द्वारा दिया गया जुड़ामणि प्रभु राम को सौंप देते हैं। जिसे देखकर प्रभु श्रीराम भावुक हो जाते हैं।
सुंदरकांड का लगातार 21 दिन पाठ करने का नियम (Rule of reciting Sunder kand for 21 consecutive days)
सुंदरकांड का पाठ कितने दिन तक करना चाहिए? सुंदरकांड का पाठ 11, 21, 31 अथवा 41 दिनों तक भी कर सकते हैं। अपनी इच्छानुसार दिन चुने और निम्न नियम का पालन करें।
- सबसे पहले स्नान करने के बाद हो सके तो लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान के सामने अपना भी आसन तैयार करें।
- हनुमान जी के सामने शुद्ध घी के दीपक जला दें।
- हनुमान जी के चरणो में 7 पीपल के पत्ते और पुष्प अर्पित करें।
- भोग के लिए यथाशक्ति हनुमान जी को फल या लड्डू मिठाई और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं।
- पीपल के पत्तों की माला बनाकर इस पूजन के बाद आसपास के किसी हनुमान जी के मंदिर में चढ़ा दें।
- उपरोक्त कार्यक्रम को रोजाना अनुष्ठान पूरा होने तक करें।
- भोग लगाने के पश्चात सुंदरकांड का पाठ करें। इसके बाद आप हनुमान चालीसा और हनुमान आरती भी कर सकते हैं। यह करने से आपको और अधिक लाभ होगा।
- अनुष्ठान पूर्ण हो जाने पर हवन आदि अवश्य करवाएं।
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