
वट सावित्री (Vat Savitri) की पूजा पति की लंबी आयु की कामना से पत्नी करती है। वट सावित्री की पूजा भारत के कई स्थानों पर मनाई जाती है जैसे – पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र और दक्षिणी भारत। लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारत में यह पूजा अन्य राज्यों के 15 दिन बाद ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। वट सावित्री (Vat Savitr त्योहार मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा शामिल है। वट सावित्री कुछ जगहों में ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को मनाई जाती है तो कुछ जगहों में अमावस्या को। वट सावित्री की पूजा में पत्नी की आस्था और पति के लिए अपार प्यार नजर आता है।
पत्नी दुल्हन की तरह सिंगार करके मन में पति के लिए लंबी उम्र की कामना लेकर यह पूजा करती है। साल 2022 में यह पूजा महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारत में 14 जून को है वही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उड़ीसा, झारखण्ड, बिहार में त्योहार 30 मई को मनाया जाएगा।
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वट सावित्री की पूजा में वट वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है? (Why is the Vat tree worshiped in Vat Savitri?)
वट सावित्री की पूजा में वटवृक्ष यानी कि बरगद के पेड़ की पूजा करने की परंपरा चलती आ रही है. हिंदू धर्म के अनुसार बरगद का पेड़ पूजनीय माना जाता है। इस पेड़ में सभी देवी देवताओं का वास माना जाता है। इस वृक्ष की पूजा करने से पत्नी अखंड सौभाग्यवती का वरदान पाती हैं इस कारण से इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा को शुभ माना जाता है साथ ही यह भी माना जाता है कि जिस तरह बरगद का पेड़ लंबा और विशाल होता है उसी प्रकार पत्नी अपने पति की लंबी उम्र की कामना से इस वृक्ष की पूजा करती है।
किस वृक्ष की पूजा की जाती है वट सावित्री में? वट सावित्री की पूजा में वट वृक्ष यानी कि बरगद पेड़ की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। हिंदू धर्म के अनुसार बरगद का पेड़ पूजनीय माना जाता है। इस पेड़ में सभी देवी – देवताओं का वास माना जाता है। इस वृक्ष की पूजा करने से पत्नी अखंड सौभाग्यवती का वरदान पाती है। इस कारण से इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा शुभ माना जाता हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि जिस तरह बरगद का वृक्ष लंबा और विशाल होता है उसी तरह पत्नी अपने पति की लंबी उम्र की कामना से इस वृक्ष की पूजा करती है।
वट सावित्री की पूजा में बांस के पंखे का विशेष महत्व (Special importance of Bamboo fan in the worship of Vat Savitri)
जो महिलाएँ यह पूजा करती है उनके पूजन सामग्री में बांस का पंखा शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इसी बांस में पंखे से बरगद के वृक्ष को हवा करना जरूरी माना जाता है। पूजा संपन्न होने के बाद इसी बांस के पंखे से पति को भी हवा किया जाता है।
वट सावित्री की कथा (Vat Savitri Vrat Katha in Hindi)
भद्र नामक देश में एक राजा रहता था जिसका नाम अश्वपति था। उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने प्रतिदिन मंत्रोच्चारण के साथ-साथ एक लाख आहुतियाँ देनी शुरू कर दी। यह कार्यक्रम 18 वर्षों तक चलता रहा। उसके बाद सावित्री देवी प्रकट हुई और राजा को कही तुझे एक तेजस्वी पुत्री का सुख मिलेगा।
सावित्री नाम की कन्या का जन्म
इस तरह सावित्री देवी की कृपा से उनके घर कन्या का जन्म हुआ। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण अपनी कन्या का नाम भी इन्होंने सावित्री ही रखा। सावित्री बड़ी होकर बेहद रूपवान और गुणवान बनी। अब राजन को सावित्री की विवाह की चिंता सता रही थी। कोई योग्य वर उन्हें नजर नहीं आ रहा था। तब उन्होंने सावित्री को स्वयं ही अपना वर तलाशने भेज दिया।
सावित्री अपने वर को ढूंढने तपोवन भटकने लगी। वहां साल्व नामक देश के राजा रहते थे जिनका नाम धुमत्सेन था। उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान पर सावित्री की नजर पड़ी और मन और हृदय से उसे अपने पति के रूप में स्वीकार कर ली।
राजा अश्वपति ने सावित्री और सत्यवान का विवाह क्यों करना पड़ा?
यह बात जब ऋषि राज नारद को ज्ञात हुई तो उन्होंने राजा अश्वपति को आगाह कराया और कहा हे राजन! सत्यवान गुणवान है, धर्मात्मा है और बलवान भी है परंतु वह अल्पायु है। उसकी आयु का शेष 1 वर्ष ही बचा है उसके बाद उसकी मृत्यु निश्चित है।
ऋषि राज नारायण की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में पड़ गए और सावित्री को सत्यवान की जगह किसी और को अपना जीवन साथी चुनने को कहा। कारण पूछने पर सारी बात उसे बताई। इस पर सावित्री ने कहा कि मैं एक आर्य कन्या हूं और आर्य कन्याएं अपने पति का एक ही बार वरण करती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार राजा एक ही बार आज्ञा देता है, पंडित भी एक ही बार प्रतिज्ञा करता है और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।
लेकिन सावित्री नहीं मानी और सत्यवान के अलावा किसी और को अपना पति बनाने से साफ इंकार कर दी तब मजबूरन राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से करा दिया।
सावित्री की विदाई हुई और वह अपने ससुराल पहुँच गई। ससुराल में सास – ससुर की सेवा करने लगी समय बीतता गया। नारद मुनि से सत्यवान की मृत्यु की तिथि सावित्री को ज्ञात थी। मृत्यु का दिन करीब आने लगा सावित्री अधीर होने लगी। उन्होंने 3 दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। साथ ही पितरों का भी पूजन करने लगी।
प्रतिदिन की भांति सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल गया। साथ में सावित्री भी गई। लकड़ी काटने सत्यवान एक पेड़ पर चढ़ा। तभी अचानक उसके सिर में तेज दर्द होने लगा। दर्द से व्याकुल होकर सत्यवान पेड़ से उतर गया। सावित्री को यह संकेत समझ आ गया था।
सत्यवान के प्राण लेने लगे यमराज
सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री उसके सिर को सहलाने लगी। तभी वहां यमराज प्रकट हुए। यमराज सत्यवान के प्राण ले जाने लगे। सावित्री तभी उनके पीछे-पीछे जाने लगे। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है तुम वापस जाओ। लेकिन सावित्री नहीं मानी।
सावित्री की निष्ठा और पति के प्रति प्रेम को देखकर यमराज ने सावित्री से कहा – हे देवी! तुम धन्य हो तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।
सावित्री ने अपने वरदान में अपने सास-ससुर के लिए दिव्य ज्योति मांगी क्योंकि उनके साथ ससुर वनवासी और अंधे थे।
लेकिन फिर भी वह अपने पति के पीछे चलती रही। यमराज ने उन्हें फिर वापस जाने को कहा। तब सावित्री बोली भगवन अपने पति के पीछे पीछे चलने में मुझे कोई परेशानी नहीं है। यह मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर यमराज ने उनको एक और वरदान मांगने को कहा।
इस वरदान में सावित्री में अपने ससुर का छीना हुआ राज्य वापस मांगा यमराज ने यह वरदान भी सावित्री को दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री नहीं मानी और पीछे पीछे चलती रही।
यमराज को कैसे लौटाएं सत्यवान का जीवन ? (How did Yamraj return Satyavan’s life)
सावित्री के नहीं मानने पर यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस बार सावित्री ने यमराज से संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्री की इच्छा भी पूरी कर दी।
तब सावित्री यमराज से कही कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और अपने पति के बिना मैं 100 संतान की माता कैसे बनूँगी। आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है।
यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। सावित्री वापस वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान को जीवन मिल गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य पहुंचे और देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है।
वट सावित्री (Vat Savitri) की पूजा करने से और वट सावित्री की कथा सुनने से वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट हो तो टल जाता है।